#### प्रस्तावना
भारतीय दर्शन की गहराइयों में, 'एक ही सत्य है, वही सबकुछ है' का विचार मुख्य रूप से प्रतिष्ठित है। यह अवधारणा हिंदू दर्शन के विभिन्न मतों में पाई जाती है, लेकिन उनके दृष्टिकोण और व्याख्याओं में भिन्नता होती है।
#### अद्वैत वेदांत
अद्वैत वेदांत के अनुसार,
**'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः'**
(ब्रह्म ही सत्य है, संसार मिथ्या है, और जीव ब्रह्म ही है)। इस दर्शन के प्रवर्तक आदि शंकराचार्य हैं, जिन्होंने अद्वैत वेदांत को लोकप्रिय बनाया। इसमें माना जाता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं है। सब कुछ एक ही परम सत्य, ब्रह्म, से उत्पन्न हुआ है और वही सब कुछ है।
#### द्वैत और सिख दर्शन
दूसरी ओर, द्वैतवादी दृष्टिकोण, जो सिख धर्म में भी प्रतिपादित है, यह कहता है कि ईश्वर सृष्टि का निर्माता है और वह हर वस्तु में व्याप्त है, परंतु सृष्टि से पृथक रहता है। यह विचार
**'एको देवः सर्वभूतेषु गूढः
सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा'**
(एक ही देव है जो सभी प्राणियों में गुप्त रूप से विद्यमान है, सब में व्यापक है और सभी का अंतरात्मा है) से अभिव्यक्त होता है।
#### समकालीन प्रभाव
वर्तमान में, हिंदू दर्शन पर अद्वैत वेदांत का प्रभाव बढ़ रहा है, विशेषकर आरएसएस के विचारधारा के कारण। आरएसएस अद्वैत वेदांत को मुख्यधारा हिंदू विचार के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। लेकिन, यह ध्यान देने योग्य है कि वैदिक दर्शन और हिंदू दर्शन का व्यापक परिप्रेक्ष्य है जिसमें विभिन्न विचारधाराएं समाहित हैं।
#### वैदिक दर्शन की महत्ता
वास्तव में, वैदिक दर्शन, जिसमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद शामिल हैं, अधिक व्यापक और समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इसमें अद्वैत, द्वैत और विशिष्टाद्वैत जैसे विभिन्न दृष्टिकोणों को स्थान दिया गया है।
वैदिक श्लोक
**'ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते,
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते'**
(वह पूर्ण है, यह पूर्ण है; पूर्ण से पूर्ण की उत्पत्ति होती है; पूर्ण से पूर्ण निकालने पर भी पूर्ण ही बचता है) इस व्यापकता का प्रतीक है।
हिंदू दर्शन की विविधता उसकी शक्ति है। अद्वैत और द्वैत दोनों ही दृष्टिकोण इस समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं। वर्तमान में अद्वैत वेदांत पर अधिक जोर होने के बावजूद, वैदिक दर्शन की समग्रता को समझना और मान्यता देना महत्वपूर्ण है। यही हमारी सांस्कृतिक धरोहर की सच्ची पहचान है।
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इस प्रकार, विभिन्न मतों और दृष्टिकोणों को समझकर ही हम भारतीय दर्शन की गहराई और उसकी व्यापकता का सही मायने में अनुभव कर सकते हैं।
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