तुझे पा लिया धूप की तरह
मगर धूप की तरह ही तू
सुबह कुछ देर ताजगी का एहसास देती है
और फिर दिन की गर्मी की तरह जलाती है
मैं जलता रहता हूँ तेरी खिलखिलाती धुप में
छांव भी नसीब नहीं
मगर तेरी जुल्फ जब मैं ओढ़ लेता हूँ
चेहरे पर वो मुझे शाम का एहसास देती है
जब तक ये एहसास जीता हूँ
तब तक तू शाम की तरह कहीं अँधेरे में खो जाती है
मैं ढूंढता फिरता रहता हूँ तुझे अँधेरे में
मगर ना जाने कहाँ तू खो जाती है
हर दिन धुप की तरह तू आती है
और रात की तरह चली जाती है
और मैं हर पल तेरे लिए
जलता भी हूँ बुझता भी हूँ