सिनेमा का साधक



सपनों को कैनवास पर उकेरता हूँ,
दिन की नौकरी में खुद को खोजता हूँ।
रात के सन्नाटों में कहानियाँ बुनता,
हर फ्रेम में अपना दिल रखता हूँ।

नहीं मापता खुद को पैसे से,
कला की परिभाषा मेरे प्रयास से।
फिल्मकार हूँ मैं, इस पहचान से नहीं,
बल्कि उस जुनून से, जो रगों में बहता है कहीं।

हर सुबह काम पर चलता हूँ,
लेकिन रातों में सिनेमा जीता हूँ।
कहते हैं, जो नाम कमाए वही महान,
मैं कहता हूँ, जो दिल लगाए वही सच्चा इंसान।

तो आज भी मैं अपने सपने जिंदा रखूँगा,
काम के बाद भी कहानियों को रचूँगा।
फिल्में मेरी आत्मा हैं, मेरी आवाज़ हैं,
मैं फिल्मकार हूँ, यही मेरी पहचान है।


No comments:

Post a Comment

Thanks

छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...