जो स्वयं से संतुष्ट हैं,
जो अपने मूल्य को जानते हैं,
वे दूसरों को गिराने में नहीं,
उन्हें उठाने में आनंद पाते हैं।
उनकी शांति, उनका गौरव,
दूसरों के अपमान में नहीं,
बल्कि अपने भीतर के प्रकाश में बसता है।
वे न तो ईर्ष्या में जलते हैं,
न ही किसी को छोटा दिखाने की चाह रखते हैं।
सच्चा आत्म-सम्मान आलोचना में नहीं,
प्रोत्साहन में प्रकट होता है।
जो भीतर से पूर्ण हैं,
वे ही दुनिया को संपूर्णता से देख सकते हैं।
इसलिए, जब कोई विनम्रता से मुस्कुराए,
जब कोई बिना स्वार्थ सहारा दे,
समझ लेना—
वह व्यक्ति भीतर से मजबूत है,
और उसकी आत्मा प्रेम से परिपूर्ण है।
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