मैंने सीखा है—
जैसे दूसरों से सीमाएँ रखनी जरूरी हैं,
वैसे ही खुद से भी।
हर "हाँ" मेरी शक्ति नहीं,
कभी-कभी "ना" भी मेरा कवच है।
मैं वही सहूँगा, जो मुझे संवारता है,
जो तोड़ता है, उसे छोड़ दूँगा।
मेरा समय, मेरी ऊर्जा, मेरा संकल्प—
इनका मूल्य मैं जानता हूँ।
शब्दों से नहीं, कर्मों से पहचान होगी,
वादों में नहीं, प्रमाणों में विश्वास होगा।
जो बीत गया, उसे बाँध नहीं सकता,
पर जो आएगा, उसे सजाने की ताकत रखता हूँ।
सीमाएँ मेरी जंजीर नहीं,
ये मेरे पंख हैं, मेरी उड़ान हैं।
हर क़दम, हर निर्णय, हर संघर्ष—
मुझे वहीं ले जाएगा, जहाँ मैं होना चाहता हूँ।
No comments:
Post a Comment
Thanks