हाँ, गुज़रा हूँ उन राहों से,
जहाँ हर निर्णय एक भार था,
जहाँ खुद को "ना" कहना,
सबसे कठिन व्यायाम था।
संशय के बोझ उठाए,
हर बार खुद को परखा है,
जिनसे कुछ न मिला,
उन्हें अंततः छोड़ना सीखा है।
हर दर्द, हर इनकार,
एक नई मज़बूती गढ़ता गया,
आज जो खड़ा हूँ अडिग,
वो बीते कल का ही उपहार है।
ये आत्म-सीमाएँ आसान नहीं,
पर हर मेहनत रंग लाती है,
जब खुद को संभालना सीख लिया,
तो दुनिया भी झुक जाती है।
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