जो मेरा नहीं, उसे जाने देता हूँ,
जो शेष नहीं, उसे बहने देता हूँ।
झूठे वादों के जाल में नहीं उलझता,
कर्मों की रोशनी में सत्य को परखता हूँ।
नए रास्तों को खुलने देता हूँ,
नई आत्माओं से मिलने देता हूँ।
न कोई भय, न कोई संकोच,
सिर्फ स्वच्छंद उड़ान, सिर्फ निर्मल सोच।
आज की तपिश सह लेता हूँ,
कल जो चाहिए, उसे गढ़ता हूँ।
अपनी बात को पत्थर मानता हूँ,
न कोई समझौता, न कोई भ्रम,
बस एक दृढ़ संकल्प—
अडिग, अचल, अजेय, अविराम।
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