चाँद की रोशनी में
रात की खामोशी में
2015 की कलम की क्रांति
Muhammad bin Qasim and the Dawn of Muslim Conquest in India: Unveiling the Genesis of Ghazwa-e-Hind.
मन का आँगन
मन तुम्हारा मंदिर है,
Understanding the Historical Context of Muslim Invasions in India: Lessons from Ghazwa-e-Hind
Growth over illusion
हीलिंग की सच्चाई
हँसी
अब मैं खुद को नहीं खोऊँगा
मैंने बहुत कुछ सहा है,
टूट कर भी खुद को जोड़ा है,
अंधेरों से गुजर कर
एक रोशनी तक पहुँचा हूँ —
जो मेरी अपनी है।
तू एक ख़ूबसूरत सपना थी,
पर सपना ही तो थी,
हक़ीक़त से बहुत दूर,
और मेरी शांति की कीमत पर।
आज मैं ठीक हूँ —
ज़ख़्म भर चुके हैं,
आँखें अब धुंध से बाहर देखती हैं,
और दिल अब खुद से बातें करता है।
तेरी यादें अब बोझ नहीं,
पर मैं फिर से उस राह पे नहीं जाऊँगा
जहाँ मुझे खुद से दूर होना पड़े।
मैंने जो सीखा है,
वो ये है —
कि खुद से की गई सुलह
किसी भी अधूरे रिश्ते से बड़ी होती है।
इसलिए अब
मैं "हम" की उस कल्पना के लिए
"खुद के इस सच्चे संस्करण" को
दांव पर नहीं लगाऊँगा।
मैं तुझे चाहता था,
पर अब खुद से भी मोहब्बत है।
और जब सवाल आएगा
तेरे ख्वाबों या मेरी सच्चाई का —
तो मैं, अब हमेशा
खुद को ही चुनूँगा।
जीवन क्यों रुके?हर पल तुम्हें बुला रहा है
जीवन की पुकार, अभी सुन लो तुम
जीवन बुला रहा है, क्यों रुके हो अभी
जीवन पुकार रहा है हमें
चंद्रगुप्त मौर्य, पोरस और सेल्यूस के बीच संबंध: ऐतिहासिक विश्लेषण
भारत का प्राचीन इतिहास विभिन्न महान शासकों, युद्धों और साम्राज्यी संघों से भरा हुआ है। इस लेख में हम तीन ऐतिहासिक व्यक्तित्वों—चंद्रगुप्त मौर्य, राजा पोरस और सेल्यूस I नायक्टर—के बारे में बात करेंगे और यह विश्लेषण करेंगे कि क्या इनका कोई आपसी संबंध था। साथ ही, हम सेल्यूस की बेटी के विवाह और उस समय की राजनीतिक स्थिति पर भी चर्चा करेंगे, जो इन सभी ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी हुई है।
पोरस और चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध
चंद्रगुप्त मौर्य और राजा पोरस दोनों ही भारतीय उपमहाद्वीप के महत्त्वपूर्ण शासक थे, लेकिन इन दोनों के बीच कोई सीधा ऐतिहासिक संबंध नहीं मिलता। पोरस का शाही साम्राज्य झेलम और चिनाब नदियों के बीच स्थित था, जबकि चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य मौर्य साम्राज्य की नींव रख चुका था, जिसका क्षेत्र अधिक व्यापक था, और यह पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्सों से लेकर भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों तक फैला हुआ था।
चंद्रगुप्त का उभार और पोरस का प्रभाव
चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की नींव रखी थी, लेकिन पोरस का साम्राज्य उस समय अस्तित्व में नहीं था जब चंद्रगुप्त ने अपनी शक्ति स्थापित की। हालांकि, चंद्रगुप्त के समय तक पोरस के राज्य का अस्तित्व नहीं रहा, लेकिन यह संभावना है कि पोरस और अलेक्ज़ेंडर के युद्ध के बाद उत्तर-पश्चिमी भारत में एक शक्ति-शून्य स्थिति उत्पन्न हुई थी, जिससे चंद्रगुप्त को अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सहारा मिला।
इस प्रकार, चंद्रगुप्त मौर्य और पोरस के बीच कोई सीधे संबंध का प्रमाण नहीं मिलता, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि पोरस की हार और अलेक्ज़ेंडर के साम्राज्य का विघटन भारतीय उपमहाद्वीप में शक्ति की पुनः स्थिति का कारण बना, जो बाद में चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य के रूप में परिणत हुआ।
सेल्यूस I नायक्टर और चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध
सेल्यूस I नायक्टर का परिचय
सेल्यूस I नायक्टर अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट के साम्राज्य के विघटन के बाद बने Seleucid साम्राज्य के संस्थापक थे। अलेक्ज़ेंडर के निधन के बाद, उसके साम्राज्य को उसकी सेनापतियों के बीच बाँट दिया गया। सेल्यूस ने सीरिया, मेसोपोटामिया और अन्य क्षेत्रों पर अधिकार किया। सेल्यूस ने भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी हिस्से पर भी अधिकार जमाने की कोशिश की थी।
चंद्रगुप्त और सेल्यूस के बीच युद्ध और संधि
जब चंद्रगुप्त मौर्य ने अपना साम्राज्य स्थापित किया, तो सेल्यूस I ने भी भारत के पश्चिमी क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में जोड़ने की कोशिश की। इसके परिणामस्वरूप दोनों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूस I को हराया। इसके बाद, दोनों के बीच शांति संधि हुई।
यह संधि महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसके तहत:
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चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूस से बड़ी भूमि (जैसे कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ हिस्से) प्राप्त की।
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सेल्यूस I को चंद्रगुप्त से शांति समझौता हुआ।
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इसके बाद, चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूस I के बीच एक राजनैतिक गठबंधन भी हुआ।
सेल्यूस की बेटी का विवाह
इस संधि के तहत, सेल्यूस I नायक्टर ने अपनी बेटी Helena की शादी चंद्रगुप्त मौर्य से कर दी। यह विवाह केवल एक व्यक्तिगत संबंध नहीं था, बल्कि यह राजनैतिक गठबंधन का एक हिस्सा था, जिसका उद्देश्य दोनों साम्राज्यों के बीच रिश्तों को मजबूत करना था।
Helena के विवाह के बाद, चंद्रगुप्त और सेल्यूस के रिश्ते और भी मजबूत हो गए। यह विवाह एक शादी-ब्याह से कहीं ज्यादा एक संधि और राजनैतिक रणनीति था, जिसके अंतर्गत दोनों पक्षों ने एक दूसरे के क्षेत्रीय हितों की रक्षा करने के लिए सहयोग किया।
सेल्यूस I का बाद का सफर और उसकी मृत्यु
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सेल्यूस I नायक्टर ने भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी हिस्से में कुछ क्षेत्र खोने के बाद भी अपनी स्थिति मजबूत की। लेकिन, 323 ईसा पूर्व में अलेक्ज़ेंडर की मृत्यु के बाद सेल्यूस के साम्राज्य को भी अनेक आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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बाद में, सेल्यूस ने अपनी सम्राज्ञी एपिया के साथ युद्ध किया और 281 ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हो गई।
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सेल्यूस I के बाद, उसका साम्राज्य छोटे राज्यों में बंट गया, और Seleucid साम्राज्य का प्रभाव कमजोर हो गया।
चंद्रगुप्त मौर्य और राजा पोरस के बीच कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन पोरस की पराजय और अलेक्ज़ेंडर के साम्राज्य का विघटन भारतीय उपमहाद्वीप में शक्ति की पुनर्रचना का कारण बना। वहीं, चंद्रगुप्त और सेल्यूस I नायक्टर के बीच राजनीतिक गठबंधन और Helena से विवाह ने उनके रिश्तों को मजबूत किया और एक नई दिशा दी। यह सब घटनाएँ प्राचीन भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुईं और मौर्य साम्राज्य के साम्राज्य विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जीवन की पुकार सुनो,
जीवन पुकार रहा है, अब क्यों ठहरें?
ज़िन्दगी बुला रही है...
मैं Alexander को ‘महान’ क्यों नहीं मानता –
एक ऐतिहासिक पुनर्विचार
इतिहास उन लोगों को याद रखता है जो कुछ असाधारण करते हैं—अच्छा या बुरा। लेकिन जब किसी को ‘महान’ की उपाधि दी जाती है, तो केवल उसकी जीतें या विजय यात्राएं नहीं, बल्कि उसके नैतिक मूल्यों, व्यक्तित्व, और जनता के प्रति दृष्टिकोण को भी देखा जाना चाहिए।
Alexander of Macedon को “Alexander the Great” कहा जाता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वह सच में ‘महान’ था?
मेरे लिए इसका उत्तर एक स्पष्ट "नहीं" है।
क्यों?
क्योंकि जिस व्यक्ति ने अपने पिता की हत्या करवाई, अपनी माँ को अनदेखा किया, अपनी महत्वाकांक्षा के लिए लाखों लोगों का संहार किया, और जिसने भारत में वीर योद्धा राजा पोरस से युद्ध में हार के बावजूद खुद को विजेता घोषित करवाया — उसे महान कहना इतिहास के साथ अन्याय है।
पिता की हत्या: सत्ता का खून से सिंचित रास्ता
Alexander के पिता Philip II ने यूनान को एकजुट किया था और Macedonia को एक शक्तिशाली राष्ट्र बनाया।
लेकिन वर्ष 336 ईसा पूर्व में उसकी हत्या कर दी गई। हत्यारा Pausanias नामक अंगरक्षक था — परंतु ऐतिहासिक स्रोतों (Plutarch, Justin आदि) में यह संकेत हैं कि हत्या की साज़िश में Alexander और उसकी माँ Olympias की संभावित संलिप्तता थी।
हत्या के बाद Alexander तुरन्त गद्दी पर बैठा।
उसने अपने सौतेले भाइयों और परिवार के अन्य प्रतिद्वंद्वियों को मरवा दिया।
क्या यह महानता है — या सत्ता के लिए निर्दयी षड्यंत्र?
एक ऐसा बेटा, जिसने माँ और रिश्तेदारों को भी नहीं छोड़ा
Alexander की माँ Olympias, शुरू में उसकी सबसे बड़ी समर्थक थी। लेकिन जैसे-जैसे Alexander फारस और एशिया की विजय यात्रा पर निकला, उसने Olympias को दूर कर दिया।
Olympias को राजनीति से बाहर रखा गया।
कई इतिहासकारों के अनुसार Alexander अपनी माँ के व्यवहार से नफरत करता था, विशेषतः उसके अत्यधिक हस्तक्षेप और तांत्रिक गतिविधियों से।
वो बेटा जो सत्ता में आते ही अपनों से मुंह मोड़ ले, और भरोसे की जगह शक रखे — क्या वो महान कहलाएगा?
एक खूनी विजेता — जिसने सभ्यताओं को रौंदा
Alexander ने 13 साल में लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर का साम्राज्य बनाया, लेकिन इस ‘महानता’ की कीमत चुकाई गई लाखों निर्दोष जानों से।
फारस, मिस्र, सीरिया, अफगानिस्तान और भारत — हर जगह उसका मार्ग विनाश और खून से लाल था।
सैकड़ों नगर जलाए गए, हज़ारों महिलाएं और बच्चे मारे गए।
Persian राजधानी Persepolis को खुद Alexander ने नष्ट करवाया, शराब के नशे में।
क्या केवल साम्राज्य का फैलाव ही महानता है?
Alexander का भारत आगमन — जीत नहीं, झूठी कहानी
कब और कैसे आया?
Alexander 327 ईसा पूर्व में अफ़गानिस्तान के रास्ते भारत आया।
उसने Indus नदी पार की और Taxila (तक्षशिला) के राजा Ambhi (जिसे यूनानी स्रोत Omphis कहते हैं) से मित्रता कर ली।
फिर उसका सामना हुआ राजा पोरस से — जो झेलम (Hydaspes) नदी के पार अपने राज्य का रक्षक था।
झेलम युद्ध (Battle of the Hydaspes) – मई 326 ईसा पूर्व
Alexander के पास लगभग 45,000 सैनिक थे, पोरस के पास लगभग 30,000 पैदल, 4,000 घुड़सवार और 100–200 युद्ध हाथी।
Alexander ने बारिश के मौसम में नदी पार करके आश्चर्यजनक हमला किया — परंतु युद्ध बहुत लंबा, कठिन और अत्यंत नुकसानदायक रहा।
Greek इतिहासकारों जैसे Arrian और Curtius Rufus ने Alexander को विजेता बताया — लेकिन इनमें से कोई भी युद्ध का प्रत्यक्षदर्शी नहीं था। सभी ने सदियों बाद रोम या एथेंस में बैठकर लिखा।
कई इतिहासकार (विशेषकर भारतीय और आधुनिक विद्वान) मानते हैं:
पोरस की वीरता और युद्ध कौशल ने Alexander को आगे बढ़ने से रोक दिया।
Alexander ने पोरस को बंदी नहीं, बल्कि सम्मानपूर्वक राज्य सहित बहाल किया।
अगर Alexander विजेता होता तो वह पोरस को न मारकर, उसके राज्य को अपने अधीन कर लेता।
सच यह है कि उसने पोरस की वीरता के सामने हार स्वीकार की, भले ही शब्दों में नहीं, पर कर्मों में ज़रूर।
क्यों नहीं बढ़ सका आगे?
Alexander की सेना Beas नदी तक पहुँची — पर वहाँ उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया।
भारतीय सेनाओं (विशेषकर नंद वंश) की शक्ति की खबरें थीं।
जंगल, बारिश, भारी हथियार और हाथी — उसकी सेना डर चुकी थी।
अंततः Alexander को वापस लौटना पड़ा — उसका भारत अभियान यहीं थम गया।
इतिहास कहता है कि यह वापसी हार नहीं थी — पर क्या पीछे हटना तब होता है जब आप सचमुच विजेता हों?
अंत – अकेला, बीमार और विरासत-रहित
Alexander की मृत्यु 323 ईसा पूर्व में Babylon में हुई — महज़ 32 वर्ष की उम्र में।
कुछ मानते हैं कि उसे ज़हर दिया गया, कुछ उसे मलेरिया या टायफॉयड बताते हैं।
उसने कोई उत्तराधिकारी नहीं छोड़ा।
उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य खंड-खंड हो गया।
न उसने कोई स्थायी प्रशासन खड़ा किया, न ही कोई न्याय व्यवस्था या शिक्षा प्रणाली।
यानी: नायक बनने की सारी शर्तों में वह असफल रहा।
तलवार से जीता राजा ‘महान’ नहीं होता
Alexander ने केवल भूमि जीती — दिल नहीं।
उसकी जीतें विजय यात्रा थीं — विकास यात्रा नहीं।
उसका साम्राज्य फैला, लेकिन उसका मानवता से रिश्ता छोटा ही रहा।
“जो अपने लोगों से प्यार नहीं कर सका,
जो अपने परिवार को न निभा सका,
जो लाखों को मार कर सिंहासन पर चढ़ा —
वो ‘महान’ नहीं, सिर्फ़ एक और ‘विजेता’ था।”
Alexander को "The Great" कहना सिर्फ़ एक औपनिवेशिक भ्रम है, जो ग्रीक लेखकों द्वारा फैलाई गई एकतरफा कहानी पर आधारित है।
आज ज़रूरत है कि हम इतिहास को पुनः देखें — अपनी नज़र से, न कि उन लोगों की आँखों से जिन्होंने उसे राजनीतिक उद्देश्य से लिखा।
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