मन तुम्हारा मंदिर है,

मन का आँगन

तुम्हारे मन का आँगन, पवित्र एक स्थान,
यह किसी का कूड़ादान नहीं, यह तो है भगवान।
जहाँ विचारों के फूल खिलें, सृजन की बहती धार,
वहां क्यों बर्दाश्त करें, कचरे की बौछार?

हर दिन लोग आते-जाते,
अपनी बातें छोड़ जाते।
कभी नकारात्मकता, कभी शिकायत,
कभी क्रोध, कभी कुटिलता का आघात।

पर याद रहे, यह मन तुम्हारा है,
इसकी रक्षा करना अधिकार तुम्हारा है।
हर शब्द को न दो अंदर प्रवेश,
हर विचार के लिए न खोलो संदेश।

यदि कोई अपने विष से भरी बात कहे,
तो मुस्कान से उत्तर दो, और दूर बहा दो।
अपने आँगन को साफ रखो,
हर कचरे को बाहर फेंक दो।

भर दो इसे उजले विचारों से,
स्नेह, करुणा और संस्कारों से।
ताकि यह बने एक निर्मल स्थान,
जहाँ उपजे बस प्रेम का गान।

क्योंकि मन की भूमि पर जो बोया जाएगा,
वही जीवन के रूप में खिलकर आएगा।
तो ध्यान से चुनो, क्या अंदर आने दो,
मन को आकाश बना दो, सीमाओं से परे रखो।

मत भूलो, यह मन तुम्हारा मंदिर है,
कचरे को बाहर रखो, और भीतर बस सुंदर है।


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