"वहम पर नहीं, विकास पर"
चिकित्सा आसान नहीं थी,
हर ज़ख़्म को सहलाना पड़ा,
हर टूटे हिस्से को
ख़ुद ही जोड़ना पड़ा —
तब जाकर
थोड़ा-सा चैन मिला।
अब जब साँसें गवाही देती हैं
कि मैं ज़िंदा हूँ,
तो मैं
उन्हीं यादों के आग़ोश में
फिर से क्यों मरूँ?
तू जो मेरे भीतर बसी है —
तेरा वो रूप,
जो मेरी उम्मीदों से गढ़ा गया था,
सच नहीं था,
वो तो बस एक मृगतृष्णा थी—
जो हर बार मुझे धोखा देती रही।
वो “हम”
जो मेरे दिल में बसा है,
वास्तव में कभी था ही नहीं,
वो सिर्फ़ मेरी चाह का नक़्शा था,
तेरी हक़ीक़त से कोसों दूर।
मैंने लड़ा,
टूटा,
और फिर उठ खड़ा हुआ,
ख़ुद को फिर से गढ़ा —
एक ऐसे इंसान में
जो अब खुद से प्यार करता है।
अब मैं
उस बीते कल के लिए
जो पहले ही मुझे संभाल नहीं सका,
अपने आज को
दाँव पर नहीं लगाऊँगा।
नहीं...
अब धोखे की जगह
मैं विकास को चुनूँगा।
वास्तविकता को चुनूँगा —
भले ही वो थोड़ी अकेली हो,
पर वो मेरी है,
सच है।
“अब मैं पीछे नहीं देखता,
क्योंकि जो बीता,
वो मुझे तोड़ गया।
अब मैं सिर्फ़ आगे देखता हूँ —
जहाँ मैं हूँ,
पूरा,
सच में।”
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