हम न्याय नहीं, प्रतिशोध चाहते हैं


"हम न्याय चाहते हैं!" यह वाक्य न्याय के प्रति हमारी आस्था को दर्शाता है, लेकिन जब हम "हम प्रतिशोध चाहते हैं!" कहते हैं, तो इसका अर्थ न्याय से कहीं अधिक है—यह व्यक्तिगत क्रोध, पीड़ा, और आक्रोश का प्रतीक है। न्याय और प्रतिशोध के बीच की इस महीन रेखा को समझना न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज के संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण है।

न्याय और प्रतिशोध में अंतर

न्याय का आधार नैतिकता और कानूनी प्रक्रिया होती है, जो समाज में संतुलन और शांति बनाए रखने के लिए आवश्यक है। यह एक संयमित और अनुशासित प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य केवल दोषी को सज़ा देना नहीं, बल्कि समाज के नैतिक ताने-बाने को फिर से स्थापित करना होता है।

वहीं, प्रतिशोध का आधार व्यक्तिगत आक्रोश और बदले की भावना होती है। यह न्याय का विकृत रूप है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति अपने दुख और अपमान का हिसाब अपने हाथों से लेना चाहता है। प्रतिशोध में व्यक्ति अपने भावनाओं में इतना बह जाता है कि उसे सही और गलत का भान नहीं रहता।

प्रतिशोध का प्रभाव

प्रतिशोध व्यक्ति को क्षणिक संतोष प्रदान कर सकता है, लेकिन यह समाज और उसके व्यक्तिगत जीवन पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है। प्रतिशोध का मार्ग हिंसा, द्वेष, और असंतुलन की ओर ले जाता है। यह आत्म-विनाशकारी हो सकता है, क्योंकि इसका अंतहीन चक्र दोनों पक्षों को और अधिक आघात पहुँचाता है।  

क्या प्रतिशोध कभी न्यायसंगत हो सकता है?

समाज में अक्सर यह प्रश्न उठता है कि क्या प्रतिशोध कभी न्याय का रूप ले सकता है। कुछ लोग यह मानते हैं कि जब न्यायिक प्रक्रिया विफल हो जाती है या जब व्यक्ति को न्याय नहीं मिलता, तो प्रतिशोध ही एकमात्र मार्ग बचता है। हालांकि, यह दृष्टिकोण संवेदनशील समाज में उचित नहीं है। प्रतिशोध का परिणाम अराजकता और अव्यवस्था हो सकता है, जिससे समाज के मूलभूत सिद्धांत खतरे में पड़ जाते हैं।

हम न्याय नहीं, प्रतिशोध चाहते हैं: 2012 के निर्भया कांड का संदर्भ

"हम न्याय चाहते हैं!" यह आवाज़ 2012 के निर्भया कांड के बाद पूरे देश में गूंज उठी थी। यह वो समय था जब पूरा समाज आक्रोश में था, और लोग न्याय के साथ-साथ प्रतिशोध की मांग करने लगे थे। लोग केवल दोषियों को सज़ा नहीं, बल्कि उन्हें सबसे कठोर दंड देने की मांग कर रहे थे। यह वह क्षण था जब न्याय और प्रतिशोध की मांगें आपस में गड्डमड्ड हो गईं थीं। 

निर्भया कांड और समाज की प्रतिक्रिया

16 दिसंबर 2012 की उस काली रात ने न केवल भारत को हिलाकर रख दिया, बल्कि दुनिया भर में एक गुस्से की लहर पैदा की। निर्भया, एक युवा मेडिकल छात्रा, दिल्ली की सड़कों पर कुछ दरिंदों की क्रूरता का शिकार बनी। इस घटना ने हर भारतीय को अंदर तक झकझोर दिया। जब यह घटना सार्वजनिक हुई, तो न्याय के लिए देशभर में प्रदर्शन शुरू हो गए। लेकिन जल्द ही यह मांग "न्याय" से बढ़कर "प्रतिशोध" में बदलने लगी। 

लोगों के आक्रोश की यह स्थिति समझ में आने वाली थी। निर्भया को जिस तरह से यातनाएँ दी गईं, वह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ एक कृत्य था। ऐसे में, जब न्यायिक प्रक्रिया लंबी हो रही थी, समाज के एक बड़े हिस्से ने प्रतिशोध की मांग की। उनके मन में यह था कि दोषियों को वैसी ही यातनाएँ मिलें, जैसे उन्होंने दी थीं।

न्याय बनाम प्रतिशोध: क्या हम सही दिशा में थे?

निर्भया कांड के बाद, न्याय के प्रति जनता की मांग इतनी तीव्र थी कि कहीं-कहीं यह प्रतिशोध का रूप लेने लगी। दोषियों को फांसी की सज़ा की मांग तो एकदम स्पष्ट थी, लेकिन इसके साथ ही भीड़ के बीच यह भावना भी उठी कि उन्हें सार्वजनिक रूप से दंडित किया जाए, यातना दी जाए, और उनका जीवन वैसा ही दर्दनाक बनाया जाए जैसा उन्होंने निर्भया के लिए किया। यह प्रतिशोध का वह रूप था जो समाज में तेजी से फैल रहा था।

यहां प्रश्न उठता है: क्या हम न्याय चाहते थे या प्रतिशोध? न्याय वह होता है जो कानूनी प्रणाली के तहत निष्पक्ष रूप से दिया जाता है, जबकि प्रतिशोध व्यक्तिगत या सामूहिक आक्रोश का परिणाम होता है। 

प्रतिशोध के परिणाम: समाज और न्याय प्रणाली पर प्रभाव

प्रतिशोध एक ऐसी भावना है जो क्षणिक आक्रोश में उत्पन्न होती है, और इसका परिणाम दीर्घकालिक हानिकारक हो सकता है। अगर समाज में हर अपराध का प्रतिशोध लिया जाने लगे, तो कानून और व्यवस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। यह समझना आवश्यक है कि न्याय और प्रतिशोध में बड़ा अंतर है। 

निर्भया कांड के बाद न्यायिक प्रणाली ने धीरे-धीरे काम किया और दोषियों को फांसी की सज़ा दी गई, लेकिन यह प्रक्रिया लंबी थी। इस दौरान कई लोग निराश हुए, और यह निराशा प्रतिशोध की ओर ले गई। परंतु अंत में, न्याय प्रणाली ने अपना काम किया और दोषियों को उनके कृत्यों की सज़ा दी गई, जो कि एक न्यायसंगत और संतुलित फैसला था। 



निर्भया के न्याय से सीख

निर्भया कांड हमें यह सिखाता है कि समाज में न्याय और प्रतिशोध के बीच संतुलन बनाना कितना आवश्यक है। जहाँ एक ओर हम सभी न्याय की अपेक्षा करते हैं, वहीं प्रतिशोध की भावना हमारे अंदर पलती रहती है। हमें यह समझना होगा कि न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना और न्याय प्राप्त करना ही सही मार्ग है। प्रतिशोध से केवल हिंसा और अराजकता का प्रसार होता है, जबकि न्याय शांति और व्यवस्था को पुनर्स्थापित करता है।

निर्भया के दोषियों को फांसी देना एक न्यायिक निर्णय था, जो समाज के संतुलन और न्याय की भावना को पुनः स्थापित करता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि प्रतिशोध नहीं, बल्कि न्याय ही वह मार्ग है जो दीर्घकालिक शांति और व्यवस्था की ओर ले जाता है। 




संस्कृत श्लोक

संस्कृत में प्रतिशोध के बारे में हमें कई श्लोक मिलते हैं जो यह बताते हैं कि कैसे यह विनाशकारी हो सकता है। एक प्रसिद्ध श्लोक है:

अक्रोधेन जयेत्क्रोधं, असाधुं साधुना जयेत्।  
जयेत्कदर्यं दानेन, जयेत्सत्येन चानृतम्॥

(महाभारत)

इस श्लोक का अर्थ है कि क्रोध को अक्रोध से, असाधु को सदाचार से, कंजूस को दान से और झूठ को सत्य से जीतना चाहिए। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि प्रतिशोध की भावना को दबाकर हम एक सच्चे और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं।

न्याय और प्रतिशोध के बीच का अंतर समझना आवश्यक है। जहाँ न्याय समाज के हित में है, वहीं प्रतिशोध व्यक्तिगत भावनाओं का नतीजा है, जो समाज को हानि पहुँचाता है। हमें प्रतिशोध की जगह न्याय का मार्ग अपनाना चाहिए, जिससे समाज में शांति, संतुलन और समृद्धि बनी रहे।

आस्था, अंधविश्वास और आडंबर: समझ और भेद

 
मनुष्य के जीवन में विश्वास की गहरी भूमिका होती है। इसी विश्वास के आधार पर वह अपने कर्म, धर्म और समाज से जुड़ता है। लेकिन विश्वास के तीन रूप होते हैं: आस्था, अंधविश्वास और आडंबर। इन तीनों में भिन्नता होती है, जो व्यक्ति के जीवन के दृष्टिकोण और उसके कर्मों में झलकती है। इस लेख में हम इन्हीं तीनों के अंतर को समझेंगे और एक संस्कृत श्लोक के माध्यम से इसे और गहराई से समझाने का प्रयास करेंगे।

आस्था
आस्था का शाब्दिक अर्थ है दृढ़ विश्वास या श्रद्धा। यह वह विश्वास है जो तर्कसंगत और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित होता है। आस्था में किसी व्यक्ति या शक्ति में पूर्ण विश्वास होता है और यह विश्वास जीवन में शांति और मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह आंतरिक और स्वाभाविक होती है, जिसका किसी बाहरी प्रदर्शन से कोई संबंध नहीं होता।  

आस्था व्यक्ति को उच्चतर शक्ति, सत्य और आत्मा की ओर ले जाती है। यह उसे धर्म और जीवन के सिद्धांतों के प्रति जागरूक करती है। आस्था से आत्मा की शुद्धता और मानसिक संतुलन मिलता है।  
 
**संस्कृत श्लोक**:  
_"श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।  
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥"_  
*(भगवद गीता 4.39)*  

इस श्लोक में कहा गया है कि श्रद्धावान व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त करता है और वह अंततः परिपूर्ण शांति प्राप्त करता है। यह शांति आस्था से उत्पन्न होती है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर ले जाती है।

अंधविश्वास
अंधविश्वास वह विश्वास है जो बिना तर्क या प्रमाण के होता है। इसमें डर और अज्ञानता का गहरा संबंध होता है। अंधविश्वास में व्यक्ति बिना किसी वैज्ञानिक या तार्किक आधार के चीजों पर विश्वास करता है। यह विश्वास समाज में वर्षों से चली आ रही भ्रांतियों और अफवाहों के कारण उत्पन्न होता है। अंधविश्वास से व्यक्ति का जीवन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है, क्योंकि यह उसे मानसिक रूप से कमजोर और निर्भर बना देता है।

उदाहरण के रूप में, अगर कोई मानता है कि बिल्ली के रास्ता काटने से दुर्भाग्य आएगा, तो यह अंधविश्वास है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, लेकिन समाज में यह धारणा लंबे समय से चली आ रही है।  

आडंबर
आडंबर का अर्थ है दिखावा या केवल बाहरी प्रदर्शन। इसमें व्यक्ति अपने विश्वासों को केवल समाज में अपनी छवि बनाने के लिए प्रदर्शित करता है, जबकि उसकी आस्था वास्तव में गहरी नहीं होती। आडंबर में व्यक्ति अपने धर्म, कर्मकांड या परंपराओं का पालन केवल दूसरों को प्रभावित करने के लिए करता है।  

आडंबर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आंतरिक श्रद्धा या आस्था नहीं होती, बल्कि इसका उद्देश्य केवल सामाजिक मान्यता या प्रतिष्ठा प्राप्त करना होता है। उदाहरण के लिए, कोई व्यक्ति बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन करता है, लेकिन वह अपने व्यक्तिगत जीवन में उन मूल्यों का पालन नहीं करता।  

**संस्कृत श्लोक**:  
_"धर्मेण हीना: पशुभि: समाना:।"_  
*(महाभारत)*  

इस श्लोक में कहा गया है कि जो व्यक्ति धर्म के बिना केवल बाहरी दिखावे में लिप्त होता है, वह पशुओं के समान है। आडंबर भी इसी प्रकार है, जिसमें व्यक्ति धर्म या विश्वास को केवल दिखावे के लिए उपयोग करता है, जबकि उसकी आत्मा उस विश्वास से दूर होती है।  

आस्था, अंधविश्वास और आडंबर जीवन के तीन ऐसे पहलू हैं, जिनका हमारे विचारों और कर्मों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आस्था व्यक्ति को सत्य और शांति की ओर ले जाती है, जबकि अंधविश्वास उसे अज्ञानता और डर में बांध देता है। आडंबर मात्र दिखावा है, जिसमें व्यक्ति केवल समाज में अपने स्थान के लिए कार्य करता है, न कि अपने आत्मिक उत्थान के लिए।  

हमें आस्था और अंधविश्वास के बीच के अंतर को समझकर अपने जीवन को तर्कसंगत और आत्मिकता की दिशा में ले जाना चाहिए और आडंबर से बचते हुए सच्ची श्रद्धा का अनुसरण करना चाहिए।

इस्लाम और वामपंथी विचारधारा का विचित्र गठबंधन: भारतीय और वैश्विक संदर्भ में


वामपंथी और इस्लामिक विचारधाराओं के बीच एक विचित्र और जटिल संबंध देखा जाता है, जो समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डालता है। देखने में दोनों विचारधाराएं एक दूसरे के विरोधाभासी लगती हैं, लेकिन विभिन्न समयों और स्थितियों में इनके बीच गठजोड़ हुआ है। इस लेख में हम भारत और विश्व के संदर्भ में इस गठबंधन के पीछे के कारणों और इसके परिणामों पर विचार करेंगे।

वामपंथी विचारधारा और धर्म

वामपंथी या कम्युनिस्ट विचारधारा मूल रूप से धर्म विरोधी रही है। कार्ल मार्क्स ने धर्म को "अफ़ीम" की संज्ञा दी थी, जिसका मतलब था कि धर्म समाज को वास्तविकता से दूर करके उसे कमजोर करता है। इस आधार पर, कम्युनिस्ट विचारधारा ने सभी धर्मों को समाज में शोषण और अन्याय का स्रोत माना है।

इस्लाम और वामपंथ का गठबंधन

फिर भी, वामपंथी अक्सर इस्लाम को छोड़कर अन्य धर्मों का कड़ा विरोध करते दिखते हैं। यह केवल एक राजनीतिक रणनीति है, जहां वामपंथी और इस्लामी विचारधाराएं एक दूसरे के साथ सहयोग करती हैं ताकि वे लोकतंत्र और आधुनिक समाजों को चुनौती दे सकें। वामपंथी विचारक अपनी सत्ता और प्रभाव बढ़ाने के लिए इस्लाम को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। दूसरी ओर, इस्लामी कट्टरपंथियों को वामपंथियों के ‘प्रगतिशील’ और ‘वैचारिक’ आवरण की आड़ मिल जाती है।

यह गठबंधन खासकर उन स्थानों में देखा जाता है जहां दोनों के विरोधी विचारधारा वाले समूह सक्रिय होते हैं। भारत में वामपंथी और इस्लामिक समूहों के बीच का संबंध इसका एक अच्छा उदाहरण है। वामपंथी ताकतें अपने हितों के लिए इस्लामी कट्टरपंथ का इस्तेमाल करती हैं और जब इस्लामिक समूह अपनी ताकत बढ़ा लेते हैं, तो वे वामपंथियों को किनारे कर देते हैं।

इतिहास में वामपंथ और इस्लाम का संघर्ष

इस्लाम और वामपंथी विचारधाराओं का गठबंधन तभी तक सफल होता है जब तक वे किसी तीसरे विरोधी विचारधारा के खिलाफ होते हैं। जैसे ही उन्हें अपने उद्देश्य की पूर्ति हो जाती है, वे एक दूसरे का दमन शुरू कर देते हैं। इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं।

सोवियत संघ: सोवियत संघ में इस्लामिक समूहों का कड़ा दमन हुआ। वहां कम्युनिस्ट शासन ने धर्म को जनता के लिए हानिकारक बताया और इस्लाम को नियंत्रित करने की कोशिश की।

चीन: इसी तरह, चीन में भी इस्लाम पर कड़ी पाबंदियां हैं। वहां इस्लामिक समूहों को सरकार की विचारधारा के खिलाफ विद्रोह के रूप में देखा गया और उन्हें लगातार नियंत्रित किया जाता रहा है।

ईरान और इंडोनेशिया: ईरान और इंडोनेशिया जैसे देशों में वामपंथी और इस्लामी समूहों के बीच लगातार संघर्ष हुआ है। इन देशों में, जब इस्लामी कट्टरपंथ ने सत्ता हासिल की, तो वामपंथी विचारकों और नेताओं को मार डाला गया।


भारत का संदर्भ

भारत में भी वामपंथ और इस्लामिक विचारधाराओं का गठबंधन देखने को मिलता है, खासकर शैक्षिक संस्थानों, राजनीतिक मंचों, और कुछ मीडिया में। वामपंथी विचारधारा को प्रगतिशीलता के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और इस्लामिक कट्टरपंथियों को इसका समर्थन मिल जाता है।

लेकिन यह गठबंधन केवल तब तक टिकता है जब तक कोई अन्य विचारधारा या सत्ता का विरोध करना होता है। जब इस्लामी कट्टरपंथियों का उद्देश्य पूरा हो जाता है, तब वे वामपंथियों को किनारे कर देते हैं। इस प्रकार, यह एक अस्थायी और स्वार्थी गठबंधन है, जिसका उद्देश्य समाज को अस्थिर करना और सत्ता हासिल करना है।

निष्कर्ष

वामपंथी और इस्लामी विचारधाराएं दोनों तानाशाही और अधिनायकवाद के प्रति झुकाव रखती हैं। दोनों का मकसद समाज को एक खास विचारधारा के तहत लाना है, जहां स्वतंत्रता, बहस, और विविधता के लिए कोई जगह नहीं होती। यह गठबंधन सिर्फ तब तक टिकता है जब तक उनके सामने एक सामान्य दुश्मन होता है। जब उनका उद्देश्य पूरा हो जाता है, तो वे एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो जाते हैं, जैसा कि हमने दुनिया के कई हिस्सों में देखा है।

भारत और विश्व के लिए यह आवश्यक है कि इस गठबंधन को समझा जाए और इसके नकारात्मक प्रभावों से बचने के उपाय किए जाएं, ताकि लोकतंत्र और आधुनिकता का संरक्षण किया जा सके।


अधकच्छी कविताएं 2

1. **चल रहा हूं, बस चलता ही जाऊं**:

   चल रहा हूं, नयी दिशा की ओर,
   बस चलता ही जाऊं, अपने सपनों की ओर।
   
   गलतियों का सिलसिला, सीखों से भरा है,
   हर कदम पर अनुभवों से गुजरा है।
   
   धीरे-धीरे सिखते हैं, नए सफर की कहानी,
   मन बढ़ता है, नई दिशा की खोज में है दीवाना।

2. **जाने में ही रहूं, बस में ही रहूं**:

   सफर में ही रहूं, अपनी मंजिल को चाहता हूं,
   खुद के साथ, नई दुनिया को खोजता हूं।
   
   न तो बाहरी दुनिया में, न ही अपने मन में,
   बस सच्चाई की खोज, है मेरी यहाँ की पहचान।
   
   जाने में ही रहूं, बस में ही रहूं, यही मेरा धर्म है,
   अपने सपनों को पूरा करते, हर पल, हर दिन।

3. **हिंदी और इंग्लिश**:

   हिंदी की मिठास, इंग्लिश की गहराई,
   भाषाओं का संगम, मेरे मन की खोज में।
   
   कोशिश है, नई दिशा की तरफ, नई सोच की राह में,
   शब्दों के साथ, संवादों की राह में।

4. **अनमोल बनो**:

   खोजता हूं, हीरे की मोहताजी को,
   बस उसके अनमोली खोज में हूं खोया।
   
   सोने से हीरा, हीरे से सोना,
   नई दिशा की राह में, मैं हूं अग्रसर होता।

5. **दिल की आरजू**:

   दिल की आरजू, जगने लगी है रोशनी,
   नई दिशा की ओर, बढ़ रहा है मेरा मनी।
   
   सपनों की उड़ान, अपने पंखों से फैलाऊं,
   हर कदम पर, नयी राह को चुनूं।

बस तुम हो मेरे

नहीं कोई और है, बस तुम हो मेरे,
जैसे चाँदनी रात में, चाँद की ज्योति हो।
तुम्हारे बिना, ये जीवन अधूरा है,
जैसे बिन धड़कन के, ये दिल अकेला हो।

तुम्हारी मुस्कान में, मेरी खुशी का संसार है,
तुम्हारी बातों में, मेरा पूरा दिन बहार है।
तुम्हारी आँखों में, बसी है मेरी दुनिया,
तुम्हारी सच्चाई में, हर झूठ का पराभव है।

साथ तुम्हारे, हर पल में है मिठास,
तुम्हारे बिना, हर दिन होता है निराश।
तुम्हारे साथ की है जो अनमोल पहचान,
नहीं किसी और में, वो अद्भुत सी शान।

तुम ही हो वो, जो मेरी रूह में बसी हो,
तुम ही हो वो, जो मेरी सांसों में रमी हो।
तुम्हारे बिना, कोई और नहीं होता,
तुम ही हो मेरे, मेरे जीवन की रोशनी हो।

हँसी

हँसी की राह पर चलो, ज़िंदगी का सफर है,
मुस्कान की बादलों को, दिल से चुनो प्यार से बारिश करो।

छोटी-छोटी खुशियाँ हैं, छुपे हैं छोटे ग़म,
हंसते हुए जीने का, इस ज़िन्दगी का मक़सद है।

चेहरे पर मुस्कान, दिल में खुशियों की उड़ान,
हँसते रहो, गाते रहो, ये ज़िन्दगी है एक गुलज़ार।

गुज़रते लम्हों को पकड़ो, ख़ुद को खो दो इनमें,
हँसी की कहानियों में, तुम्हें खो जाने दो, मस्ती में।

हँसी की राह पर चलो, ज़िंदगी का सफर है,
मुस्कान की बादलों को, दिल से चुनो प्यार से बारिश करो।

गम के आवाज़ में नयी कविता बुनता हूं,सपनों के साथ, जीवन का सफर चलता हूं।

गम के आवाज़ में नयी कविता बुनता हूं,
सपनों के साथ, जीवन का सफर चलता हूं।

चलते चलते राहों में, गम को पार करता हूं,
नई उड़ानों की तलाश में, आसमानों को छूता हूं।

हर सुबह नए आसमान के साथ उठता हूं,
ख्वाबों की डोरी को जीने की राह पर बांधता हूं।

मुसाफिर हूं इस ज़िंदगी के सफर में,
खुद को ढूंढते हुए, नई राहों में निकलता हूं।

नए सवेरे की राहों में, मैंने अपना इंतज़ार किया।

ग़म की राहों में, मैं डूबा नहीं हूँ,
ग़म ने मुझमें, अपना सच छुपा नहीं हूँ।

ग़म के आँधीओं में, मैंने अपना आकार खोया,
पर ग़म के साथ, नई ख़ुशियों को पाया।

नयी उड़ानों के साथ, मैं चल रहा हूँ,
राहों में मैंने, अपने अपने सपने सजाए हैं।

ग़म के पेड़ों में, मैंने अपना सहारा ढूंढा,
नए सवेरे की राहों में, मैंने अपना इंतज़ार किया।

मुसाफ़िर हूँ मैं, राहों का रंग देखने को आया,उड़ने की इच्छा, अधूरी कविता को पूरा करने को आया

गम की आंधी में डूबते हुए, क्या मैंने था तुम,
या गम की गहराई में, क्या तुमने थे मैं।

गम से बाहर निकालकर, नयी राहें चुनी हमने,
नए सपने सजाए, नई ज़िंदगी की कहानी हमने।

भूल गये थे हम, गम का वास्तविक रूप,
एक पल का है, ये धरा का सौंदर्य रूप।

नयी सुबह के साथ, नया सफ़र आएगा,
राहों में बिखरे, नया संगीत गा पाएगा।

मुसाफ़िर हूँ मैं, राहों का रंग देखने को आया,
उड़ने की इच्छा, अधूरी कविता को पूरा करने को आया।

एक पेड़ के नीचे, अटके हुए थे हम,
मगर उसके शाखाओं से, नई उम्मीद की ख़ुशबू आई हमें।

मुसाफ़िर हूँ मैं, चला जाऊंगा,

ग़म की लहरों में डूबा हूँ, या ग़म मुझमें डूबा हूँ,
पर ग़म के साथ चल कर, नयी राहों को चुना हूँ।

उस ग़म को बाहर निकाल कर, नये सपने सजाएं,
मैंने कुछ नया रचा है, नयी धारा में बह जाएं।

ग़म तो बस एक पल है, एक पहाड़ है जो चला जाएगा,
नई सुबह की किरणों में, मैं खुद को पा जाऊंगा।

राहों में मैंने अपने सफ़र को जारी किया है,
मुसाफ़िर हूँ मैं, चला जाऊंगा, ऊँचाईयों को छूने को आया हूँ मैं।

उड़ने की आशा से, मैं बस यहाँ आया हूँ,
कुछ पेड़ों के नीचे अटका हूँ, नये सपनों को जगाने को आया हूँ।

मैंने खुद को ढूँढ़ा है,

ग़म के सागर में तैरते हुए, मैंने खुद को ढूँढ़ा है,
उस ग़म की लहरों में, नयी राहों को पाया है।

नयी कविता की कोशिश की, नए ख्वाब बुने हैं,
भूला हुआ था कि ग़म तो बस एक पल का है, नई उम्मीदों को सुने हैं।

चल पड़े हैं सफ़र पर, मुसाफिरों की तरह,
हर कदम पर, नई धुंधली रोशनी को ढूंढा है दिल ने।

उड़ने की आसमानी ख्वाहिश, अब साकार हो रही है,
कुछ पलों के लिए, उस पेड़ के नीचे, जहाँ मैं अटक गया था, सफ़र शुरू हो रहा है।

बड़ी शायरी


ज़िन्दगी की राहों में, गम का साथ चलता है,
पर उस गम को पार कर, नई ख़ुशियों की खोज में चलता है।

हर सुबह नई उम्मीदों के साथ आती है,
हर रात के बाद, नयी राहतों की राह ख़ूबसूरती से बनती है।

चलो आगे बढ़ें, साथ मिलकर सपनों को पाने की राह पर,
गम के हाथों में, नई ख़ुशियों का हाथ पकड़कर साथ चलते हैं हम।

चलो ठीक है, यहाँ एक बड़ी शायरी है:



जिन्दगी की राहों में गहराई सी बसी है,
सपनों की उड़ान, मिट्टी से ही न बनी है।
हर रोज़ एक नया सफ़र, हर पल एक नयी राह,
गम के साथ चलना, खुशियों की धूप में खिलना सीखा है।
चलो, अब उठें, उड़ें, नई राहों में बढ़ें,
सपनों के साथ दिल को मुस्काना सीखा है।

आपकी मर्ज़ी पर हुज़ूर, इस शायरी का मेज़बानी कर रहे हैं।


ज़िंदगी की राहों में, गमों की बारिश होती है,
पर उन बारिशों से ही, हर फूल खिला करता है।

मुसीबतों के सागर में, हर किनारा चमकता है,
हौसले और जज्बातों से, हर रास्ता संवरता है।

जीने का मतलब है, चुनौतियों का सामना करना,
हर मुश्किल को आँचल में बुनकर, जीना सीखना।

इस ज़िन्दगी की सफ़र में, राहों को चुनना सीखो,
गमों को मोहर बनाकर, खुशियों की छाप छोड़ना सीखो।

ज़िन्दगी की राहों में चलते चलते,

ज़िन्दगी की राहों में चलते चलते,  
गम के समंदर में भी दुख से मिलते।  
पर जीना सिखा, मुस्कान में हंसते,  
सपनों को पाने की राह में बढ़ते।  

चलो उड़ान भरें, सपनों के परिंदे,  
ख्वाबों को सच करें, इस धरा के बिन्दे।  
हर सुबह नई राह की रोशनी हो,  
जीने का मतलब, सपनों को पाना हो।

चलो ठहरो, मोहब्बत की राहों में ज़रा सवारी करें,गुज़रे लम्हों की बातें करें, दिल की बातें सुनाएं।

चलो ठहरो, मोहब्बत की राहों में ज़रा सवारी करें,
गुज़रे लम्हों की बातें करें, दिल की बातें सुनाएं।
हसीन नज़ारों को देखकर दिल को भरने चले,
ज़िन्दगी की कहानी को शायरी के अल्फाज़ों में सजाएं।
सौगातों की बरसातों में रोमांस का सफर करें,
एहसासों के रास्तों पर प्रेम का इज़हार करें।
चलो, मोहब्बत की दुनिया में खो जाएं,
शायरी के महकते फूलों में खुद को ढलने दे।

गम की लहरों में डूब कर नहीं,

गम की लहरों में डूब कर नहीं,
गम के साथ खेलकर मुस्कान में जीना सीखा है।
जीवन की राहों में फिर से चल पड़े,
नई सुबह की किरणों में खुद को पाना सीखा है।
राहों में मैंने अपना सफ़र जारी किया,
मुसाफिर हूं, ज़िन्दगी के गीतों को गुनगुनाना सीखा है।
उठना, जाना, उड़ान भरना चाहता हूं,
क्योंकि जीने का मतलब, सपनों को पूरा करना सीखा है।

गम का सागर है, लहरें उसमें बहुत हैं,

गम का सागर है, लहरें उसमें बहुत हैं,
पर साथी, तू भी तैर, नई किनारे की तलाश में।
गम का पहाड़ है, ऊँचा और विशाल है,
लेकिन हौसला मत हार, नयी राह पे है सफ़र में।
तू मुसाफिर है इस ज़िंदगी के सफ़र में,
रुक, सोच, और फिर चल, नई उड़ान की तलाश में।

श्वासों के बीच का मौन

श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...