गुलदस्ता


नही चाहिए तेरी यादों का वो गुलदस्ता

जिसमे तूने फिर से महका कर दिये हुये हैं वो फूल 

जो मुरझा गए थे ..

जब मैंने उन्हे छूने कि सोची  थी

तब जब मेरे सूखे वन में 

जरूरत थी फूलों से खिले 

 पौधों की 

जो खिला दे मेरे चमन को 

मगर जब तब न खिले 

वो फूल अब क्या करूँ  उनका 

जब मैंने अपने पतझड़ जीवन को बहार बना दिया.

सच्ची महानता"



सच्ची महानता दूसरों की सराहना में नहीं,
बल्कि आत्मनिर्भरता और अपनी पहचान में बसी होती है।
जब हम खुद पर विश्वास रखते हैं,
तब हमें किसी से प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।

महानता वह नहीं जो बाहरी दुनिया हमें देती है,
बल्कि वह है जो हम अपने अंदर महसूस करते हैं।
जब हम अपनी खुद की राह पर चलते हैं,
तब ही हम सच्चे अर्थ में महान होते हैं।

जो आत्मनिर्भर होते हैं, वही सच्चे रूप में मजबूत होते हैं,
क्योंकि वे अपने फैसलों के लिए खुद जिम्मेदार होते हैं।
बाहरी अनुमोदन से नहीं,
बल्कि अपने आंतरिक विश्वास से वे महानता को प्राप्त करते हैं।

सच्ची महानता यही है,
जब हम अपनी पहचान से जीते हैं,
न कि दूसरों के नजरिए से।
आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता ही वह रास्ता है,
जो हमें असली महानता की ओर ले जाता है।


अच्छा व्यक्ति क्या है?



अच्छा व्यक्ति वह नहीं है जो दूसरों को दिखाने के लिए अच्छा बनता है,
वह वह है जो अपनी सच्चाई और मूल्यों से जीता है, बिना किसी शोर के।
अच्छा व्यक्ति बनने की यात्रा और दिखावे के लिए अच्छा होने का रास्ता,
दो अलग-अलग रास्ते हैं, जो कभी एक नहीं हो सकते।

एक रास्ता होता है आत्मनिर्भरता का,
जहाँ हम अपनी खामियों को स्वीकारते हैं, और हर दिन खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं।
दूसरा रास्ता है, दूसरों को प्रभावित करने का,
जहाँ हम दिखाते हैं कि हम अच्छे हैं, ताकि लोग हमें सराहें, सम्मान दें।

जो व्यक्ति दिखावे के लिए अच्छा होने की कोशिश करता है,
वह अहंकार के जाल में फँस जाता है।
क्योंकि सच्ची अच्छाई तो उस व्यक्ति के कर्मों में है,
जो बिना किसी अपेक्षा के, सिर्फ सही करने की इच्छा से काम करता है।

यदि हम सच्ची अच्छाई की खोज में हैं,
तो हमें खुद को हर दिन बेहतर बनाने के लिए काम करना चाहिए,
न कि दूसरों की निगाहों में खुद को महान बनाने के लिए।
क्योंकि जब हम दूसरों से प्रमाण की तलाश करते हैं,
तब हम अपने ही अहंकार के पीछे भाग रहे होते हैं,
और अच्छाई का असली अर्थ खो देते हैं।


सच्ची विनम्रता



यह बात नहीं है दूसरों की मदद करने की,
बल्कि यह है, खुद को ऊँचा महसूस करने की।
"मैंने मदद की," यह सोचकर,
क्या मैं खुद को विशेष बना रहा हूँ?

मगर असली विनम्रता तो तभी आती है,
जब मैं बिना किसी पहचान की इच्छा के काम करता हूँ।
जब मैं बिना शोर मचाए,
सिर्फ अपनी आत्मा की आवाज़ पर चलता हूँ।

कभी न किसी के ध्यान में आना चाहता हूँ,
न किसी के शब्दों की खोज में रहता हूँ।
सच्ची मदद, वो है जो बिना दिखावे के हो,
जब मैं बिना किसी वैलिडेशन के, खुद से सच्चा रहूँ।

विनम्रता का असली मतलब यही है,
जब हम दूसरों की मदद करते हैं, लेकिन अपना अहंकार छोड़ देते हैं।
क्योंकि जब हम खुद को बढ़ाने की बजाय,
सिर्फ अच्छाई के लिए काम करते हैं, तब ही सच्ची विनम्रता प्रकट होती है।


अच्छा व्यक्ति होने का भ्रम



"अच्छा इंसान समझना" जैसे यह मान लेना,
कुछ हफ्तों के लाभ से ट्रेडिंग में महारत पा लिया।
यह सिर्फ एक अहंकार का जाल है,
जो सच्चे काम और सुधार की राह से अंधा कर देता है।

जो दिखता है, वो कभी सच नहीं होता,
सच्ची उन्नति मेहनत में छिपी होती है, बिना किसी दिखावे के।
मैंने कुछ अच्छे दिन देखे, तो क्या इसका मतलब यह है?
कि मैं अब हर रास्ते पर हमेशा सही रहूँगा?

याद रखो, अहंकार सबसे बड़ा दुश्मन है,
वो हमें सच्चे विकास और समझ से दूर ले जाता है।
हर नए अनुभव को गहरे से समझो,
तभी सच्ची मास्टरजीप और विकास की ओर बढ़ो।

सिर्फ कुछ अच्छे पल नहीं,
बल्कि निरंतर प्रयास और सच्ची सीख से ही सफलता मिलती है।
तो कभी भी यह न समझो, कि तुम ‘अच्छे इंसान’ हो,
जब तक तुम हर दिन खुद को बेहतर बनाने के लिए काम नहीं करते।

हमारी आज की उड़ान



आज तो कुछ खास है, लग रहा है जैसे शोले,
सभी मिलकर उड़े हैं, जैसे कोई बड़ा बखेड़ा हो!
सोचते हैं हम, क्या ये सही है, या फिर स्वप्न में खो गए,
लेकिन ये तो कोई महाकवि की पंक्तियाँ लगती हैं, क्या ये हम ही हैं जो बिखर गए!

आज तो ज्ञान की बारिश हो रही है,
वो भी बिना रेनकोट के, ऐसे जैसे हम सब भीग रहे हैं।
मेरे पास भी कुछ खजाने हैं, जो सबको दिखाए बिना,
सभी कहते हैं, "ओह! ये नया क्या है? ये तो नया ज्ञान, नया मंत्र है!"

कभी हम थे बोझ, अब तो उड़ते हैं,
आसमान में चमकते सितारे, जैसे हम ही चमकते हैं!
आज की फीड है jackpot, एकदम धांसू,
कभी हम थे इन्फ्लुएंसर, अब तो हम खुद हैं guru!

हमारी बगिया में नए फूल खिले हैं,
वो भी अलग रंगों में, हरे, गुलाबी, और पीले भी।
इतना ज्ञान और पॉपकॉर्न साथ में,
क्या कहूँ, आज तो बेमिसाल है हमारा हर दिन!

मस्ती में और ज्ञान में एक साथ बहे,
आगे बढ़ते जाएं, जहां भी जाएं, बस हम ही रुकें नहीं!
क्या यह हमारी यात्रा का फिनाले है, या बस शुरुआत,
लेकिन आज के दिन में, हम सब हैं।
 बस शानदार और शानदार! 


मैं कौन हूँ?



मैं न नाम हूँ, न शरीर,
न मन के भाव, न विचारों की लकीर।
मैं न भावनाओं का सागर,
न हृदय की धड़कन का गूढ़ असर।

जो कुछ भी समझा "मैं",
वो सब है छलावा, सब है भ्रम।
ना मैं वह हूं जिसे लोग पुकारें,
ना वो हूं जिसे अपनी आंखें निहारें।

कभी सोचा, कौन हूँ मैं?
क्या ये मांस-पिंड, हड्डियों का संग्राम?
या वो ध्वनि जो कानों में गूंजे हर शाम?
शायद नहीं, ये सब परछाई मात्र है,
सत्य तो उस मौन में छुपा, जो अनन्त है।

मैं न सपनों का कोई अंश,
न कर्मों का जाल, न समय का बंध।
न माया की मूरत, न इच्छाओं का खेल,
मैं तो हूँ बस चेतना का प्रवाह, अमल और सहज।

शून्य हूं, फिर भी पूर्ण हूं।
न जन्म में बंधा, न मृत्यु से भय।
न दिन का गवाह, न रात का परिप्रेक्ष्य।
मैं बस "हूँ" - अनंत, असीम।

सारी पहचानें गिरती हैं चूर,
जब "मैं" की सीमाएं होतीं हैं दूर।
मैं वही हूँ, जो न शब्दों में बंध सके,
न आँखों के सामने प्रकट हो सके।

ओ आत्मा, तेरा सत्य अडिग है।
वो जो न शरीर, न नाम, न मन से जुड़ा है।
साक्षी बन, देख ये खेल तमाशा,
क्योंकि तेरा स्वरूप है शुद्ध, अभेद, और निराश्रय।

मैं कौन हूँ?
मैं वो हूँ, जो सदा मुक्त है,
जिसे किसी पहचान की आवश्यकता नहीं,
जो बस "हूँ"।


स्वस्थ सीमा की आवश्यकता


मैं जानता हूँ, जीवन में एक सीमा बनानी चाहिए,
जो मुझे खुद से जोड़े रखे, हर रिश्ते में संतुलन बनाए।
कभी भी, किसी के भी सामने,
मैं अपनी पहचान और आत्मसम्मान से समझौता नहीं करूँगा।

मैं कभी नहीं भूलता, खुद को खोकर रिश्तों में नहीं समाना,
स्वस्थ सीमा से ही मैं प्यार और सम्मान को बनाए रख सकता हूँ।
किसी का दबाव या अपेक्षाएँ न हों,
मेरी असली ताकत मेरी सीमाओं को समझने में छिपी है।

सम्बंध चाहे जैसे भी हों, मुझे खड़ा रहना है,
अपनी पहचान से सच्चा रहकर, मुझे कभी नहीं झुकना है।
कभी भी, किसी भी स्थिति में,
स्वस्थ सीमा बनाए रखना ही मेरा कर्तव्य है।

यह कोई अहंकार नहीं, न ही हृदय की कठोरता है,
बल्कि आत्म-सम्मान का संकेत, खुद को गहरे सम्मान से जीने का तरीका है।
क्योंकि जब मेरी सीमा स्वस्थ होती है,
तब मैं किसी भी रिश्ते में सच्चाई और प्यार को संजो सकता हूँ।


अच्छे कर्मों की चुपचाप गूंज


अच्छे कर्म, जैसे चुपचाप गूंजते हैं,
कोई शोर नहीं, बस एक सधा हुआ आह्वान होता है।
इनकी आवाज़ नहीं होती, पर असर गहरा होता है,
जैसे सागर में डाले गए एक छोटे से पत्थर का रेशा लहरों में फैलता है।

जब मैं किसी की मदद करता हूँ, तो यह लम्हे गूंजते नहीं,
फिर भी उनकी गूंज हर दिल में महसूस होती है।
यह अहंकार नहीं, बस एक साधारण सी सच्चाई होती है,
जो बिना शब्दों के भी दिलों तक पहुँच जाती है।

सच्चे अच्छे कर्म बिना दिखावे के होते हैं,
जिन्हें बस किया जाता है, बिना किसी पुरस्कार की आस के।
वो गूंज नहीं सुनाई देती, लेकिन हर ह्रदय में गहरी होती है,
यह एक चुपचाप गूंज है, जो सदियों तक जीवित रहती है।

अच्छे कर्म कभी वक्त की मांग नहीं करते,
वे बस होते हैं, बिना किसी प्रशंसा की चाहत के।
इनकी सच्ची आवाज़ किसी शोर में खोती नहीं,
क्योंकि अच्छे कर्म हमेशा अपनी गूंज छोड़ जाते हैं, चुपचाप, पर स्थायी।


सच्चाई और अच्छाई का अंतर



"अच्छा बनने की चाहत" कभी दिखावा बन जाती है,
एक मास्क, जो छिपाता है अंदर की असली सच्चाई।
मैं खुद को दूसरों की उम्मीदों में ढालने लगा,
यह सोचकर कि यही रास्ता सही होगा, यही सबसे बड़ा काम होगा।

लेकिन जब मैंने भीतर झांका, तब समझा,
सच्ची अच्छाई तो कभी दिखावे में नहीं समाती।
यह तलाश है, दूसरों से तारीफ पाने की,
पर क्या ये मेरी असली पहचान है? या बस एक नकली कहानी है?

मैं जानता हूँ, असली ताकत मेरी क्रियाओं में है,
मेरे विचारों में नहीं, मेरे कामों में है।
यह दिखावा, यह छवि, कुछ भी नहीं है,
सच्ची ताकत तो तब है, जब मैं खुद से सच्चा रहूँ, अपनी पहचान से जुड़ा रहूँ।

मेरे मूल्य, मेरी सच्चाई, यही मेरी शक्ति है,
जो दुनिया की नजरों से परे, मेरी आत्मा की गहराई में बसी है।
सच्चा बनो, और अपने भीतर की आवाज़ को सुनो,
दूसरों के संस्करण में बंधकर कभी मत जीयो।

क्योंकि जब तुम खुद से सच्चे रहते हो,
तभी तुम्हारी ताकत, तुम्हारा व्यक्तित्व चमकता है।
जो तुम हो, वही सबसे महान है,
दूसरों की उम्मीदों के सामने खुद को कभी मत छोड़ो।


मेरे माता-पिता का अहंकार



मेरे माता-पिता ने सिखाया, अच्छा होना है,
दूसरों की नज़र में सम्मानित, यही तो होना है।
उन्होंने कहा, "सच्चे इंसान बनो,"
लेकिन कभी न पूछा, "क्या तुम सच में वही हो?"

उनके विचारों में मैंने खुद को खो दिया,
जिन्हें मैंने आदर्श माना, उन पर ही निर्भर हो गया।
चाहे सही हो या गलत, मुझे दिखाना था अच्छा,
दूसरों की उम्मीदों में बसा मेरा पूरा सपना।

वे चाहते थे मैं समाज के अनुसार चलूं,
लेकिन क्या मैं कभी अपने दिल की आवाज़ सुन पाया?
कभी अपने सवालों का उत्तर नहीं पाया,
क्या यह अच्छाई थी, या बस एक दिखावा था?

उनकी नज़र में था हर कदम एक परीक्षा,
क्या मैं सही था, या बस दिखावा था सच्चा?
पर अब समझता हूँ, हर वो बात जो मुझे सिखाई,
वो शायद मुझे खुद से दूर ले जाने की राह थी, न कि मुझे सच्चा बनाने की।

मैं अब जानता हूँ, राजा बनने के लिए पैदा हुआ हूँ,
दूसरों की राय को खुद पर भारी न पड़ने दूँ।
मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छाई का रास्ता दिखाया,
लेकिन अब मैं जानता हूँ, मैं खुद से सच्चा रहकर ही जीवन को समझ पाऊँगा।

वे मेरे आदर्श थे, लेकिन अब मुझे समझ है,
दूसरों के अनुसार अच्छा होने की बजाय,
मुझे अपनी पहचान से जुड़ा रहना है,
क्योंकि खुद से सच्चा रहकर ही हम अपनी असली शक्ति पा सकते हैं।

 

मैं और मेरा अहंकार"



मैं सोचता था, अच्छा होने का मतलब है,
दूसरों की नज़र में सर्वोत्तम होना, यही है।
मैं अपनी सोच को पीछे छोड़ देता था,
सिर्फ उनके विचारों में खुद को खो देता था।

हर कदम, हर फैसले का आधार,
उनकी राय, उनकी मंजूरी, यही था मेरा विचार।
मैं अपनी असली आवाज़ को दबा देता,
क्योंकि दूसरों की नज़र में अच्छा दिखना, यही मेरा सपना था।

मैंने अपनी पहचान को खो दिया था,
क्योंकि दूसरों की सराहना में खुद को पाया था।
मैंने खुद से सवाल नहीं पूछा,
क्या मैं सच में वही हूँ जो दूसरों को दिखाना चाहता हूँ?

मैंने यह समझा कि वैलिडेशन की तलाश,
मुझे बना देती है एक खोखला इंसान, बिना आत्मा के।
क्योंकि जो दिखता है बाहर, वो अंदर से हल्का होता है,
खुद को दूसरों के हिसाब से बदलना, यही तो दासता का रास्ता है।

मैं अब जानता हूँ, मैं राजा बनने के लिए पैदा हुआ हूँ,
दूसरों की नज़र में अच्छा बनने का खेल, यह मेरा रास्ता नहीं है।
मैं खुद से सच्चा रहकर ही जी सकता हूँ,
नकली अच्छाई के पीछे भागने की बजाय, अपनी पहचान से जुड़ा रह सकता हूँ।

मैं अब जानता हूँ, सही रास्ता वही है,
जहाँ मैं खुद को पाता हूँ, न कि दूसरों की उम्मीदों में।
मैं राजा हूँ, और राजा को कभी भी दास नहीं बनना चाहिए,
क्योंकि खुद से सच्चा रहकर ही हम अपनी असली शक्ति पा सकते हैं।


अच्छे व्यक्ति होने का अहंकार



मैं सोचता हूँ, मैं हूँ एक अच्छा इंसान,
मेरे कर्म, मेरी बातें, सब हैं महान।
दूसरों को सिखाना, यह मेरा काम है,
क्या मैं सच में उस पर खरा उतरता हूँ, या बस दिखावा है?

मैं दूसरों की मदद करने में रहता हूँ व्यस्त,
पर क्या कभी अपने भीतर झांकने की कोशिश की है मैंने?
क्या अपने आंतरिक संघर्षों को मैंने समझा है,
या बस दूसरों को बेहतर बनाने की चाहत में खुद को भुलाया है?

सच तो यह है, मैं कभी नहीं जान पाया,
जो दिखता है बाहर, वो भीतर से कितना भिन्न होता है।
मैं अपने अहंकार में बंधा हुआ था,
"मैं अच्छा हूँ," यही सोचकर खुद को धोखा देता था।

जब मैं कहता हूँ कि मैं सच्चा हूँ,
क्या मैंने कभी खुद से यह सवाल पूछा?
कभी किसी का दिल दुखाया तो नहीं,
क्या मेरी अच्छाई सिर्फ दिखावा है, या सच्चाई है?

मैं यह समझता हूँ कि अच्छाई दिखाने से बढ़ती है,
पर क्या असल अच्छाई अंदर से उपजती है?
मैं क्या अपने दोषों को स्वीकारने का साहस रखता हूँ?
या बस दूसरों को सही राह दिखाकर खुद को श्रेष्ठ मानता हूँ?

आज मैं यह समझता हूँ, सबसे बड़ा अहंकार है,
"मैं अच्छा इंसान हूँ," यह सोचना।
सच्ची अच्छाई तो तब है, जब मैं खुद को मिटा दूँ,
तभी समझ पाऊँगा कि असली अच्छाई क्या है।


अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...