यह बात नहीं है दूसरों की मदद करने की,
बल्कि यह है, खुद को ऊँचा महसूस करने की।
"मैंने मदद की," यह सोचकर,
क्या मैं खुद को विशेष बना रहा हूँ?
मगर असली विनम्रता तो तभी आती है,
जब मैं बिना किसी पहचान की इच्छा के काम करता हूँ।
जब मैं बिना शोर मचाए,
सिर्फ अपनी आत्मा की आवाज़ पर चलता हूँ।
कभी न किसी के ध्यान में आना चाहता हूँ,
न किसी के शब्दों की खोज में रहता हूँ।
सच्ची मदद, वो है जो बिना दिखावे के हो,
जब मैं बिना किसी वैलिडेशन के, खुद से सच्चा रहूँ।
विनम्रता का असली मतलब यही है,
जब हम दूसरों की मदद करते हैं, लेकिन अपना अहंकार छोड़ देते हैं।
क्योंकि जब हम खुद को बढ़ाने की बजाय,
सिर्फ अच्छाई के लिए काम करते हैं, तब ही सच्ची विनम्रता प्रकट होती है।
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