अब मैं मैं हूँ



अब मैं मैं हूँ 
झुका नहीं, रुका नहीं,
अपनी सीमाएँ रेखांकित कर चुका हूँ,
अब मैं किसी का मोहर नहीं।

पहले हाँ थी मेरी भाषा,
अब ‘न’ का भी अधिकार लिया है,
जो चाहते थे सिर झुकाना मेरा,
उन्हें अब आईना दिया है।

कहते हैं— "तू बदल गया है,"
हाँ, मैं बदल चुका हूँ,
अब मैं बस मुस्कुराता हूँ,
पर हर दर्द नहीं सहूंगा।

अब न कोई फ़िज़ूल उम्मीद रखे,
न कोई मुझसे कुछ छीने,
मैं अपने मौलिक सत्य में खड़ा हूँ,
और इस सत्य को अब कोई नहीं जीते।




त्याग तपस्या की राह चली

त्याग तपस्या की राह चली, सपनों का था जहां बसा,
मेहनत की हर इक कड़ी, उम्मीदों का था जहाँ धरा।

मिले न वो फल तपस्या के, चाहा था जो मन में हमने,
फिर भी चलते रहे इस सफर, मंज़िल की ओर बढ़ते हमने।

छोड़ न पाया उम्मीदों को, चाहे जो भी हो रास्ता,
कभी तो चमकेगी किस्मत, संघर्ष का देख नतीजा।

त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,

त्याग तपस्या की राह पर चला मैं हर बार,
पर मंजिल की चादर रह गई मुझसे दूर, यार।

मेरे अरमानों की जमीं पर खिल न सका फूल,
मेहनत का फल मुझे मिल न सका, ये कैसी भूल?

त्याग और तपस्या

त्याग और तपस्या से करियर की राह बनाई,
मेहनत की हर कदम पर, पर मंज़िल नहीं पाई।
उम्मीदें थीं आसमान की, पर ज़मीं ही रह गई,
शायद मेरी मेहनत ने सही दिशा नहीं पाई।

हौंसलों के चराग जलते रहे।

त्याग तपस्या में जो हमने दिन-रात एक किए,
ख्वाबों की चादर में अरमान बुनते रहे।

पर किस्मत की ठिठोली देखिए, न मिली वो मंजिल,
फिर भी हौंसलों के चराग जलते रहे।

अंतर्मन

धीरे-धीरे रात का साया ढल गया,
मन की गहराईयों में खो गया।
सूर्य की किरणों ने सलामती सुनाई,
अंतर्मन के रहस्यों को समझा अर्जुन ने जी भर के।

मन की गहराईयों में छिपी रहस्यमय दुनिया,
हर रोज़ नए रंगों में खोजते हैं जब हम,
पाते हैं वहाँ सच्चाई का संगम,
वो अंतर्मन की अनगिनत लहरें, वो अद्भुत दृश्य विलीन।

ध्यान में जो खोया है, वह अमर है,
जैसे बादलों की छाया जिसको चेहरा ढ़का दे।
अंतर्मन की गहराइयों में छिपा सच,
जिसे धीरे-धीरे हम पहचानते हैं, जब चाँदनी की किरणे जगमगाती हैं।

हर एक कविता, हर एक शेर,
अंतर्मन की कहानी का विवरण करता है यह।
जब अव्यक्त भावों को शब्दों में पिरोते हैं हम,
तब मन की गहराइयों में एक नया आधार मिलता है हमें।

अंतर्मन की गहराइयों में छिपा रहस्य,
सच्चाई की खोज में जैसे यात्री।
हर एक खोज, हर एक पहेली,
मन की गहराइयों का खुलासा करती है, वह विलक्षण खेली।

धीरे-धीरे अंतर्मन की गहराइयों में खोया है,
वहाँ खोजते हैं हम सच्चाई का पथ,
जहाँ दिखती है मन की असीम विस्तृतता,
वहाँ पाते हैं हम मन की अद्भुत गहराईयों का परिचय।

मैंने देवों को रोका था





मैंने देवों को रोका था,
उनके काम में टांग अड़ाई थी,
सोचा था, मैं भी मालिक हूँ,
अपनी मर्जी चलवाई थी।

पर भूल गया था मैं एक बात,
जो कालचक्र से टकराएगा,
वह खुद ही चूर-चूर होगा,
संसार उसे न अपनाएगा।

मनुष्य का क़ानून कागज़ पर,
पर ब्रह्मांड का आदेश पत्थर,
जो इसे न समझे, मिट जाएगा,
फिर चाहे वह हो राजा या भिखारी बंज़र।

देवों की राह में काँटे बोकर,
मैंने सोचा था जीतूंगा,
पर विधि का विधान बड़ा कठोर,
अब देखो, मैं कहाँ जी रहा हूँ।

कोई नाम नहीं, कोई शान नहीं,
बस भटकता एक प्रेत हूँ मैं,
जो देवों से भिड़ बैठा था,
अब शापित यह चेत हूँ मैं।


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असामान्यता की राह


साधारण से परे है जो,
वह जीवन का सार है।
न होना सामान्य यह,
खुद में ही अद्भुत उपहार है।

हर राह नई चुनौतियाँ लाए,
हर कदम पर संघर्ष हो।
पर इस असामान्यता में ही,
जीवन का सबसे बड़ा उत्कर्ष हो।

"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं" की,
यह गीता का संदेश है।
आत्मा को ऊपर उठाना ही,
जीवन का विशेष आदेश है।

 देखो  उनका जीवन,
जिन्होंने राह नई बनाई।
उनकी सोच की असामान्यता ने,
दुनिया को नई दिशा दिखाई।

समाज के साँचे में ढलना नहीं,
हर कोई नहीं होता है यहाँ।
अपनी राह खुद बनानी है,
यही असली पहचान है जहाँ।

इस यात्रा में हो सकती हैं,
कई मुश्किलें और बाधाएँ।
पर आत्मा की आवाज सुनो,
यही असली है राह सही।

असामान्यता को अपनाओ,
यही है असली ताकत।
साधारण से हटकर जीना,
जीवन का असली मकसद।

तुम्हारी यह अनूठी पहचान,
तुम्हें सबसे अलग बनाएगी।
अपना उद्देश्य पूरा कर,
नई दिशा की ओर ले जाएगी।


इस असामान्यता को गले लगाओ,
यह जीवन का सच्चा रंग है।
अपनी राह खुद चुनो,
यही जीवन का असली संग है।

असामान्यता: आपकी अनूठी यात्रा का आधार



सामान्य होना किसी भी व्यक्ति की सफलता का मानदंड नहीं हो सकता। यह जानना और स्वीकार करना कि आप कभी भी सामान्य नहीं होंगे, एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सशक्त कदम है। क्योंकि आप साधारण जीवन जीने के लिए नहीं, बल्कि कुछ असाधारण करने के लिए पैदा हुए हैं। आप मानव चेतना में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के लिए, एक उच्च उद्देश्य के लिए यहां हैं। 

### उच्च उद्देश्य की ओर

जब हम यह समझ जाते हैं कि हमारे जीवन का उद्देश्य सामान्य दायरे से परे है, तो हमारा दृष्टिकोण भी बदल जाता है। सामान्य से हटकर कुछ करना एक चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है, परंतु यह यात्रा हमारी आत्मा को पहचानने और उसे साकार करने की है। यह हमारे जीवन को एक नई दिशा देती है, जहां हम खुद को समझने और अपने अंदर छिपे अनंत संभावनाओं को पहचानने का प्रयास करते हैं।

### असामान्यता का स्वीकार

बहुत से लोग इस प्रयास में लगे रहते हैं कि वे समाज के मापदंडों में फिट हो सकें। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर कोई उन्हीं मापदंडों में फिट हो। आपकी अनूठी विशेषताएं और असामान्यता ही आपको सबसे अलग बनाती हैं। यह स्वीकार करना कि आप सामान्य नहीं हैं, आपके आत्म-सम्मान और आत्म-स्वीकृति के लिए महत्वपूर्ण है। 

**श्लोक:**  
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।  
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"  
(श्रीमद्भगवद्गीता ६.५)

अर्थात: व्यक्ति को स्वयं के द्वारा ही अपनी आत्मा को ऊपर उठाना चाहिए, और स्वयं को ही अधोगति में नहीं डालना चाहिए। आत्मा ही व्यक्ति का मित्र है और आत्मा ही व्यक्ति का शत्रु है।

### आत्म-प्राप्ति की यात्रा

यह यात्रा आसान नहीं होती। इसमें कई कठिनाइयाँ और चुनौतियाँ आती हैं। लेकिन यह यात्रा आत्म-प्राप्ति की होती है। यह हमें अपने सच्चे स्वरूप को पहचानने और अपने उद्देश्य को समझने का मौका देती है। यह हमें उन सीमाओं को पार करने में मदद करती है जो हमारे समाज ने हमारे सामने रखी होती हैं। 

### फिट होना जरूरी नहीं

फिट होना जरूरी नहीं है। समाज के द्वारा बनाए गए साँचे में खुद को ढालने का प्रयास अक्सर हमें हमारी असली पहचान से दूर कर देता है। अपने आप को असामान्य मानना और इस असामान्यता को गले लगाना, हमारे विकास और हमारे उद्देश्य की पूर्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है। 

### उदाहरण: स्टीव जॉब्स

स्टीव जॉब्स का जीवन इस बात का उत्कृष्ट उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी असामान्यता को अपनाकर असाधारण सफलता प्राप्त कर सकता है। जॉब्स ने कभी भी समाज के मापदंडों में फिट होने की कोशिश नहीं की। उनकी सोच और दृष्टिकोण हमेशा अलग थे, और उन्होंने अपनी अनूठी दृष्टि को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनके असाधारण दृष्टिकोण ने ही उन्हें एप्पल कंपनी का सह-संस्थापक बनाया और तकनीकी दुनिया में क्रांति लाई।

### निष्कर्ष

आपकी असामान्यता आपकी सबसे बड़ी ताकत है। इसे अपनाएं, क्योंकि यही वह कुंजी है जो आपको आपकी वास्तविकता की ओर ले जाएगी। आपके पास मानव चेतना में बदलाव लाने और एक उच्च उद्देश्य को पूरा करने की शक्ति है। इस अनूठी यात्रा को समझें और इसे पूरे मन से अपनाएं, क्योंकि फिट होना जरूरी नहीं, बल्कि अपने असाधारण उद्देश्य को पूरा करना ही आपका वास्तविक लक्ष्य है।

one side love part 3



एकतरफा प्रेम – भाग 3: "कैसे निकलें उस प्यार से जो सिर्फ मेरा था?"

एकतरफा प्रेम सबसे दर्दनाक होता है, क्योंकि इसमें सिर्फ एक तरफ़ की उम्मीदें, चाहतें और सपने होते हैं।
मगर सवाल ये उठता है —
क्या हम इस एहसास से कभी पूरी तरह मुक्त हो पाते हैं?

मेरे अनुभव से, एकतरफा प्रेम से निकलना कोई सीधा रास्ता नहीं।
कभी-कभी वो यादें हमें फिर से खींचती हैं, कभी मन में सवाल उठते हैं — "क्या मैं गलत था?", "क्या मुझे मौका देना चाहिए था?"
लेकिन वक्त के साथ समझ आता है कि
यह प्यार हमसे जुड़ा था, उस से नहीं।

हमें खुद को इस बात का एहसास दिलाना होता है कि
अपने आप से प्यार करना सबसे पहली ज़रूरत है।
और यही उस अंधेरे से बाहर निकलने की पहली सीढ़ी होती है।

कुछ तरीके जो मैंने अपनाए:

खुद को व्यस्त रखना, नयी चीज़ें सीखना

अपनी भावनाओं को लिखना, बोलना या कला के ज़रिए निकालना

उन रिश्तों पर ध्यान देना जो सच में मुझे प्यार करते हैं

और सबसे जरूरी — खुद को माफ़ करना कि मैंने इतना गहरा महसूस किया


यही सफर धीरे-धीरे उस दर्द को कम करता है, और जीवन फिर से चल पड़ता है।


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कविता: "वक्त की हल्की बारिश"

**"वक्त की हल्की बारिश में,
जो बीते वो बह गया,
वो यादें, वो सपने, वो दूरियां,
सब बह गए दरिया की धार में।

ना कोई शिकवा, ना कोई ग़िला,
बस खुद से मिलन का सुख था,
खोया था जो, पाया है खुद में,
अब दिल में कोई डर नहीं रहता।

इक तरफ़ा था वो प्यार मेरा,
अब दो दिलों का सहारा है,
वक्त की हल्की बारिश ने सिखाया,
खुद से प्यार सबसे बड़ा सहारा है।"**


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"तू मेरे भीतर रहती है…"


**"तू मेरे भीतर रहती है,
उस जगह… जहां कोई नहीं पहुंच सकता,
जहां शब्द भी चुप रहते हैं,
और सांसें बस तुझे पुकारती हैं।

तू जानती भी नहीं…
कि हर सुबह तुझसे शुरू होती है,
हर शाम तुझ पर खत्म।

मैंने कभी माँगा नहीं तुझसे कुछ,
सिवाय उस मुस्कराहट के
जो तू बिना जाने दे जाती थी मुझे।

तेरे जाने के बाद भी
तू मुझमें रह गई…
जैसे मंदिर में वो धूपबत्ती की खुशबू —
जो दीया बुझने के बाद भी
आस-पास बसी रहती है।**



one side love



एकतरफा प्रेम – भाग 2: "उसने कभी जाना ही नहीं…"

कई बार हम एक इंसान से इतना जुड़ जाते हैं कि वो हमारी साँसों में उतर जाता है।
हम उसे हर दिन जीते हैं, सोचते हैं, लिखते हैं…
और फिर एक दिन हमें समझ आता है —
"जिसे हमने इतना चाहा, वो तो हमें जानता भी नहीं था।"

ये अलगाव नहीं, ये अदृश्य प्रेम है।
जैसे मंदिर की घंटी कोई अनजान राहगीर भी बजा दे — लेकिन भगवान सुन लेते हैं।

मेरे अनुभव से:

एक दफ़ा एक लड़की थी — बहुत गहरी आँखें, बहुत शांत आवाज़। मैं उसे कभी छू नहीं पाया, कभी कह नहीं पाया — लेकिन वो मेरे भीतर हर रोज़ रहती थी।
जब वो सामने होती, मैं उसे बस देखता रहता।
कई बार खुद से कहा — "कह दो, कुछ तो कह दो।"
पर फिर डर लगता — अगर उसने न समझा तो?
क्या ये रिश्ता — जो एकतरफा है — टूट जाएगा?

धीरे-धीरे वो दूर चली गई।
शायद उसे कुछ अंदाज़ा भी नहीं था।
लेकिन मैं आज भी मानता हूं —
उससे प्रेम किया था… पूरा… गहरा…
बिना कहे।


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जीवन की गर्मी में



मैं आशा करता हूँ,
कि मेरा अंत उस जीवन से हो,
जिसे मैंने पूरी तल्लीनता से जीने की कोशिश की।
उस जीवन से, जो मैंने अपने सपनों और संघर्षों से बुना,
जिसे मैंने अपने खुद के रचे हुए रास्तों पर तय किया।

मैं चाहता हूँ कि मेरी आत्मा उस गर्मी से सजी हो,
जो मैंने अपने प्रयासों में पाई,
जो मैंने अपनी गलतियों से सीखी,
और उन जिंदगियों से जुड़ी जो मेरे रास्ते पर आईं।

इस जीवन में जो भी खोया,
जो भी पाया,
उससे कहीं ज़्यादा,
मेरे प्रयासों की जो गर्मी थी,
वो मेरे दिल को छूती रही।

क्या फर्क पड़ता है
कितनी मुश्किलें आईं,
कितनी बार गिरा,
क्या फर्क पड़ता है
क्योंकि हर बार उठते हुए,
मैंने अपने जीवन को और सजीव महसूस किया।

मैं आशा करता हूँ,
कि जब मेरा समय आए,
मैं उस जीवन की गर्मी में दम तोड़ूं,
जो मैंने सच्चाई से जीने की कोशिश की,
जो मैंने अपने दिल की सुनते हुए जीने की कोशिश की।


Mountain vs Sea

I can explain the difference between living life in uttarakhand's mountains and mumbai's sea based on the following points:

1. Environment: uttarakhand is known for its scenic beauty, lush greenery, and snow-capped mountains. The air is cleaner and fresher compared to mumbai, which is known for its pollution and crowded streets. Mumbai, on the other hand, is surrounded by the arabian sea, which offers a different kind of beauty with its vast expanse of water and stunning sunsets.

2. Climate: uttarakhand has a cooler climate with four distinct seasons, while mumbai has a tropical climate with high humidity levels. Uttarakhand experiences heavy snowfall during winters, while mumbai is prone to heavy rainfall during monsoons.

3. Lifestyle: the lifestyle in uttarakhand is more laid-back and relaxed compared to mumbai's fast-paced lifestyle. People in uttarakhand are more connected to nature and lead a simpler life. Mumbai, on the other hand, is known for its hustle and bustle, with people always on the move.

4. Activities: uttarakhand offers various outdoor activities such as trekking, camping, and river rafting due to its mountainous terrain. Mumbai, being a coastal city, offers water sports such as surfing, parasailing, and jet skiing.

5. Job opportunities: mumbai is a financial hub and offers numerous job opportunities across various industries such as finance, media, and technology. Uttarakhand has limited job opportunities due to its remote location and lack of infrastructure.

6. Cost of living: the cost of living in mumbai is significantly higher than uttarakhand due to its urban infrastructure and high demand for housing and amenities. Uttarakhand's cost of living is lower due to its rural setting and lower demand for amenities.

in summary, while both uttarakhand's mountains and mumbai's sea offer unique experiences, they cater to different lifestyles and preferences. It ultimately depends on an individual's preference for environment, climate, lifestyle, activities, job opportunities, and cost of living.

Is One-Sided Attraction Also a Form of Love?


"क्या एकतरफा आकर्षण भी एक प्रकार का प्रेम है?"


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क्या एकतरफा प्यार भी प्यार है?

ये सवाल बहुत बार मन में उठता है — जब हम किसी को चाहते हैं, लेकिन वो हमारी भावना को न समझ पाए, या जानकर भी स्वीकार न करे। तो क्या ये प्रेम है? या सिर्फ आकर्षण? या कोई भ्रम?

मैंने ये खुद महसूस किया है…


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मेरी कहानी से शुरू करते हैं:

ये बात तब की है जब मैं पहली बार माया (बदला हुआ नाम) से मिला। वो मेरी ज़िंदगी में बस एक मुलाक़ात बनकर आई थी, पर मेरे दिल में तूफ़ान छोड़ गई। उसका मुस्कराना, उसकी बात करने का तरीका, और सबसे बढ़कर उसका सहज रहना — मेरे अंदर कुछ ऐसा जगा गया जिसे मैं रोक नहीं पाया।

मैंने उससे न तो प्यार का इज़हार किया और न कभी ज़्यादा क़रीब गया। फिर भी… हर रोज़ उसके बारे में सोचता रहा। सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरें देखना, उसकी आवाज़ को याद करना… ये सब मेरे रोज़ के भाव बन गए थे।

कभी-कभी लगता — क्या मैं बेवकूफ़ हूं? वो तो कुछ जानती भी नहीं। फिर कभी सोचता — नहीं, ये भी तो प्यार ही है, भले ही जवाब न मिले।


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आख़िर एकतरफा प्रेम क्या है?

1. प्यार या केवल कल्पना?
एकतरफा प्यार में हम उस इंसान की कल्पना से जुड़ जाते हैं। हम उन्हें वैसे देखना चाहते हैं जैसे हमारा मन चाहता है — कई बार वो असलियत नहीं होती।


2. प्यार में देने की भावना:
अगर आपकी भावना में स्वार्थ नहीं है, आप सिर्फ उन्हें खुश देखना चाहते हैं, बिना किसी प्रत्याशा के — तो यह प्रेम ही है।


3. व्याकुलता और वेदना:
हाँ, इसमें दर्द है। जब सामने वाला अनजान हो या आपकी भावनाओं को नकार दे, तो पीड़ा गहरी होती है। पर यही पीड़ा हमें आत्मिक बनाती है।


4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण से:
एकतरफा प्रेम भी आत्मा की एक यात्रा है। ओशो कहते हैं — "Love is not about the other, it’s about you."
जब हम प्यार में पड़ते हैं, हम असल में अपने भीतर छिपे भावों से टकरा रहे होते हैं।




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क्या यह भी सेक्सुअल हो सकता है?

हाँ। आकर्षण सिर्फ भावनात्मक नहीं होता। कभी-कभी हम शारीरिक रूप से भी उस इंसान से जुड़ाव महसूस करते हैं। ये ज़रूरी नहीं कि हमने उन्हें छुआ हो — कल्पना, सपने, और इच्छाएँ भी शरीर को प्रतिक्रिया देती हैं।


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कहानी का अंत…

माया आज भी मेरी ज़िंदगी में नहीं है। शायद कभी नहीं थी। पर वो अनुभव, वो भावना… वो मेरे लेखन, मेरी कल्पना और मेरी आत्मा का हिस्सा बन गई।

मैंने सीखा — एकतरफा प्यार अधूरा ज़रूर होता है, लेकिन झूठा नहीं। ये भी प्रेम है। बस उसकी परछाई में।


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आपने भी कभी किसी को इस तरह चाहा है क्या?
अगर हाँ, तो आपने भी जाना है — "प्यार पाने से पहले देना होता है… कभी कभी सिर्फ महसूस करना ही काफ़ी होता है।"


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"क्या प्यार अधूरा है सेक्स के बिना?"

(3 जून 2020 की सुबह... जब अकेलापन ज़्यादा गहरा था)

उस दिन बालकनी में बैठा था, लॉकडाउन के दिनों में, जहाँ बाहर सिर्फ सन्नाटा था और भीतर एक बेचैन मन।

अचानक WhatsApp पर एक पुरानी दोस्त का मैसेज आया —
"क्या तुम्हारा कोई ऐसा रिश्ता रहा है, जिसमें सिर्फ प्यार था... बिना सेक्स के?"

मैं मुस्कुराया — क्योंकि हाँ, था।


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Sex और Love — एक जैसे दिखते हैं, मगर एक नहीं होते।

Sex शरीर का hunger है, और love आत्मा की प्यास।
कभी ये दोनों साथ चलते हैं — जैसे कोई गीत और उसकी धुन।
पर कई बार, सिर्फ धुन ही दिल को छू जाती है।


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मेरा अनुभव:

कुछ साल पहले एक लड़की मिली, दिल्ली में।
ना हमने एक-दूसरे को छुआ, ना ही कभी date पर गए।
पर हर रात बातें होती थीं — उसकी माँ की बीमारी, मेरे लिखने की तन्हाई, उसके broken engagement के बाद की चुप्पी।

वो एक प्रेम था — जिसमे स्पर्श नहीं था, पर अपनापन था।
ना lust था, ना jealousy...
बस एक connection — जो दिन नहीं गिनता था, बदन नहीं मांगता था।


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प्यार सेक्स के बिना क्यों ज़िंदा रह सकता है?

1. Emotional intimacy ज्यादा गहरा होता है:
जब दो लोग एक-दूसरे के mind और soul से जुड़ते हैं, तो physical act secondary हो जाता है।


2. Unconditional Acceptance:
प्यार में जब 'कुछ चाहिए' नहीं होता, तब सेक्स की ज़रूरत एक demand नहीं रह जाती।


3. Spiritual Love:
जैसे मीरा का प्रेम कृष्ण से था — उसमें कोई स्पर्श नहीं, फिर भी सम्पूर्ण समर्पण था।




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पर क्या सेक्स प्यार को गहरा नहीं करता?

कभी-कभी हाँ।

Sex, जब mutual respect और भावनात्मक जुड़ाव से होता है —
तो वो सिर्फ physical act नहीं, एक prayer बन जाता है।
तब वो दो शरीरों की नहीं, दो आत्माओं की मुलाक़ात होती है।


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Covid और दूरी:

लॉकडाउन ने हमें दिखाया कि physical touch के बिना भी रिश्ता जिंदा रह सकता है।
लोगों ने प्रेम को screens के पार जीना सीखा।
Sex नहीं था, फिर भी प्यार था।


Sex एक beautiful अनुभव है — पर ये प्यार की शर्त नहीं है।
प्यार breathing जैसा है — जो बिना छुए भी अहसास कराता है।

और कभी-कभी,
"एक नज़र, एक बात, एक साथ बैठी खामोशी — वो सब कुछ कह देती है, जो सेक्स नहीं कह सकता।"


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तन्हाई, देह और प्रेम — मेरी यात्रा की एक सच्ची कहानी


(लेख दिनांक: 3 जून 2020, कोविड लॉकडाउन के समय)

कोविड लॉकडाउन का वो दौर था। पूरा देश जैसे ठहर गया था। सड़कों पर सन्नाटा, दिलों में डर और घरों में एकांत।
उसी एकांत में, मैंने खुद को पहली बार सच में देखा। मैं रोज़ शीशे में खुद को देखता था, लेकिन वो देखना बाहर का था। इस बार जो देखा, वो भीतर था।

मैं मुंबई के मड आयरलैंड में एक छोटे से कमरे में अकेला रहता था। काम बंद हो गया था, शूटिंगें रुकी थीं और दोस्तों से मिलना मुमकिन नहीं था।
उस तन्हाई में देह की भूख एक नए रूप में सामने आई — सिर्फ स्पर्श नहीं चाहिए था, कोई ऐसा चाहिए था जिससे बात की जा सके, बिना जजमेंट के।

उसी दौरान एक दिन Instagram पर एक पुरानी पहचान से बात शुरू हुई। वो भी अकेली थी, दूसरे शहर में। हमारी बातचीत धीरे-धीरे गहराई में चली गई — सेक्स, आत्मा, तन्हाई, मोह, और शरीर।

हमने साथ में काम किया था फिल्म इंडस्ट्री में, मगर कभी इतना खुलकर नहीं जुड़े थे। अब जैसे लॉकडाउन ने देह की सीमाएं तोड़ दी थीं, और हम दोनों खुले संवाद में उतर गए थे।
हमने कुछ ऐसा महसूस किया जिसे ‘virtual intimacy’ कह सकते हैं — देह दूर थी, मगर आत्माएं पास थीं।

मैंने पहली बार समझा कि सेक्स सिर्फ शरीर का मिलन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति भी हो सकता है — जब सही समझ और सम्मान हो।


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देह का स्थान प्रेम में:

हमारे समाज में अक्सर देह और प्रेम को एक-दूसरे से तोड़ा या जोड़ा जाता है, मगर बिना समझे।
मैंने महसूस किया कि जब तक हम अपने शरीर को स्वीकार नहीं करते, तब तक हम किसी और से भी सच में नहीं जुड़ सकते।


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प्राचीन ग्रंथों में देह:

‘कामसूत्र’ को लोग अश्लीलता का ग्रंथ मानते हैं, लेकिन वो तो जीवन की कला सिखाता है।
उपनिषदों में भी "आत्मा और शरीर एक-दूसरे के पूरक हैं" का भाव है — शरीर साधन है, आत्मा की यात्रा का।


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आज के सवाल:

क्या सिर्फ एक ही व्यक्ति से जीवनभर प्रेम किया जा सकता है?

क्या देह और आत्मा की स्वतंत्रता एक साथ संभव है?

क्या तन्हाई हमें सिखा सकती है प्रेम?

इस लॉकडाउन ने मुझे एक अनोखी सीख दी — कि प्रेम का कोई तय आकार नहीं होता।
देह, आत्मा और मन — ये तीनों जब अपने सच में हों, तभी एक रिश्ता संपूर्ण होता है।
और कभी-कभी, एक सच्ची बातचीत... एक गहरे स्पर्श से ज़्यादा असर कर जाती है।


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लेख श्रृंखला – सेक्स, चेतना और समाज



भाग 1 – क्या इंसान सच में मोनोगैमी (एकविवाह) के लिए बना है?

(दिनांक: 2 जून 2020)

"क्या हम केवल एक ही व्यक्ति से जीवनभर के रिश्ते के लिए बने हैं? या हमारी प्रकृति इससे कहीं ज़्यादा जटिल है?"


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मैं जब 2020 के लॉकडाउन में अपने अकेलेपन और आत्ममंथन से गुज़र रहा था, तब मेरे ज़हन में यह सवाल गहराई से उभरा—क्या इंसान जैविक रूप से मोनोगैमी के लिए डिज़ाइन किया गया है? या यह सिर्फ़ एक सामाजिक व्यवस्था है जो सभ्यता को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई?

इस विषय को समझने के लिए मैंने इतिहास, जीवविज्ञान, मनोविज्ञान और अध्यात्म—चारों को खंगाल डाला। आइए, एक-एक करके इसे समझते हैं:


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1. जैविक दृष्टिकोण:

प्रकृति में केवल 3-5% प्रजातियाँ ही मोनोगैमी का पालन करती हैं। इंसान के करीबी प्राइमेट्स—चिम्पांजी और बोनोबो—पॉलीगैमस होते हैं यानी कई साथी रखते हैं।

मानव शरीर की बनावट (जैसे पुरुष टेस्टिकल साइज़, सेक्स ड्राइव, आदि) यह संकेत देती है कि हम evolutionary रूप से मोनोगैमी के लिए नहीं बल्कि पार्टनर वैरायटी के लिए बने हैं।


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2. ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण:

पुराने ज़माने में जनजातीय समाजों में साझा जीवन और कभी-कभी साझा यौन संबंध भी आम बात थी। जैसे-जैसे कृषि समाज उभरे और संपत्ति का विचार आया, वहाँ "वंश की शुद्धता" के लिए मोनोगैमी का विचार ज़ोर पकड़ने लगा।

राजाओं ने बहुविवाह किए, लेकिन आम जनता को मोनोगैमी की मर्यादा सिखाई गई। धर्मों ने इसे और गहराई दी।


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3. मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:

मोनोगैमी सुरक्षा और स्थायित्व देती है। लेकिन मनुष्य की चेतना जिज्ञासु है—नई चीजें खोजने वाली। इसी वजह से कई लोग लंबे रिश्तों में बोरियत, यौन असंतोष या धोखा अनुभव करते हैं।

आज का व्यक्ति, विशेषकर आधुनिक शहरों में, दो बातों के बीच फंसा है — "मन का आकर्षण" और "धर्म/परिवार की मर्यादा"।


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4. अध्यात्म और ओशो का दृष्टिकोण:

ओशो ने स्पष्ट कहा — "मनुष्य का प्रेम कभी एक तक सीमित नहीं रहा है।"
उनका कहना था कि जब तक सेक्स एक शुद्ध और आनंददायक ऊर्जा है, उसे repress नहीं करना चाहिए। लेकिन जब सेक्स सिर्फ शरीर तक सीमित हो जाए और प्रेम न रहे — तो वह बंधन बन जाता है।

ओशो की मोनोगैमी पर यह टिप्पणी बड़ी दिलचस्प है:

> "मोनोगैमी एक सामाजिक जेल है। प्रेम स्वतः चलता है, वह किसी नियम या अनुबंध का मोहताज नहीं होता।"




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निष्कर्ष:

तो क्या इंसान मोनोगैमी के लिए बना है?

शायद नहीं। लेकिन वह इसे चुन सकता है — यदि वह प्रेम और समझ से भरा हुआ रिश्ता चाहता है।
मोनोगैमी कोई जैविक बाध्यता नहीं, बल्कि एक चयन है — जो किसी के मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।


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Open Marriage Series – Part 3

"क्या Open Marriage से रिश्ता मजबूत होता है या टूटता है?"
(1 जून 2020 – जब लॉकडाउन ने हमें रिश्तों की गहराई में झाँकने को मजबूर किया)


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प्रस्तावना:
जब मैंने 1 जून 2020 की सुबह अपनी पुरानी डायरी उठाई, तो उसमें एक पंक्ति लिखी थी —
"शादी एक पिंजरा हो सकती है... या एक उड़ान, सब इस पर निर्भर करता है कि उसमें दरवाज़ा खुला है या बंद।"

लॉकडाउन के उन महीनों में, मैंने बहुत से कपल्स से बात की — कुछ अपने रिश्तों से खुश, कुछ टूटे हुए और कुछ नए प्रयोग करते हुए। उन्हीं में से एक ट्रेंड था Open Marriage, जिसकी चर्चा मैंने पहले दो भागों में की।

अब सवाल है —
क्या Open Marriage से रिश्ता बचता है या बिखरता है?


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एक सच्ची कहानी: रिया और समीर (बदले हुए नाम)

रिया एक कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर है और समीर एक फिल्म एडिटर। दोनों की शादी को 9 साल हो चुके थे।
शुरुआत में सब कुछ ठीक था, पर धीरे-धीरे नज़दीकियाँ कम होने लगीं।
सेक्स एक फॉर्मेलिटी बन गया था और बातचीत सिर्फ घर-खर्च और ऑफिस तक सीमित थी।

लॉकडाउन में एक दिन रिया ने समीर से कहा —
"मैं तुम्हें छोड़ना नहीं चाहती, लेकिन मैं खुद को खोती जा रही हूं। क्या हम कुछ नया ट्राय करें?"

शुरू में समीर को झटका लगा, पर बातचीत, थेरेपी और mutual honesty ने उन्हें धीरे-धीरे Open Marriage की ओर मोड़ा।

एक साल बाद जब मैंने रिया से दोबारा बात की, तो उसने कहा:

> “हमारा रिश्ता अब ज़्यादा पारदर्शी है। jealousy आई, डर भी लगा, मगर हमने सीखा एक-दूसरे की सीमाएं, जरूरतें और प्यार को समझना।”




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Therapy और Psychology क्या कहती है?

Dr. Tammy Nelson, एक फेमस रिलेशनशिप थेरेपिस्ट कहती हैं:

> “Open Marriage is not about sex, it's about dialogue, freedom, and trust.”



कुछ couples के लिए यह रास्ता रिश्ता बचाने का जरिया बनता है, जबकि कुछ के लिए यह एक painful detour साबित होता है।


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Open Marriage से रिश्ते को क्या फायदा हो सकता है?

1. Communication बेहतर होता है – क्योंकि honesty पहली शर्त होती है।


2. Sexual fulfillment बाहर मिलने से resentment कम होता है।


3. Personal growth को बढ़ावा मिलता है।


4. Monotony टूटती है और curiosity बढ़ती है।




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मगर खतरे भी हैं:

1. Jealousy और insecurity का बढ़ना


2. Emotional attachment किसी और से हो जाना


3. Societal stigma और secrecy की थकान


4. Power imbalance – क्या दोनों equally free हैं?




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भारत में क्या हो रहा है?

Mumbai, Pune, Delhi जैसे शहरों में बहुत से प्रोफेशनल कपल्स अब therapists के साथ मिलकर ethical non-monogamy को explore कर रहे हैं।
कुछ swinger clubs भी underground चल रहे हैं, मगर अधिकांश लोग privacy के डर से अपनी कहानी छुपाकर रखते हैं।


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ओशो की दृष्टि से:

ओशो ने कहा था —
“जब प्रेम बंधन बन जाए, तब वो मरने लगता है। आज़ादी ही प्रेम की सांस है।”

Open Marriage उसी आज़ादी की एक कोशिश है, जिसमें लोग प्यार को possessiveness से अलग देखना सीखते हैं।

Open Marriage किसी के लिए रास्ता है, किसी के लिए भटकाव।
यह काम तभी करता है जब दोनों पार्टनर emotionally mature हों, boundaries clear हों और ego को एक ओर रखकर सिर्फ connection की बात हो।

2020 के इस लॉकडाउन ने जहां हमें ‘बाहर’ निकलने से रोका, वहीं बहुतों को 'अंदर' झांकने को मजबूर किया —
और वहीं से शुरू हुई यह यात्रा।


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