आत्मा की संपूर्णता दी थी


एक टूटी आत्मा की पुकार

मैंने आत्मा की संपूर्णता दी थी,
विश्वास की चुप नदियों में बहकर,
तुझे अपना देवता माना था कभी,
तेरे शब्दों में ईश्वर की प्रतिध्वनि सी लगी।

मैंने आँखें मूँदकर तुझ पर यकीन किया,
तेरे चेहरे के पीछे की परछाइयों को भी
प्रेम की रोशनी से चमका दिया था।
पर तू... तू तो एक मुखौटा था—
मुस्कराता हुआ धोखा,
नम्रता की ओट में छुपा
नीचता का महासागर।

मैंने तुझमें ईमानदारी देखी थी,
पर तू तो अवसरवादी निकला,
तेरे हर वादे में स्वार्थ था,
तेरे हर गले मिलने में गंध थी—
गंध उस चरित्र की जो
सिर्फ मतलब के मौसम में फूलता है।

तू जानता है तेरा अंत:करण खोखला है,
इसलिए तू डरता भी नहीं,
माफ़ी तुझसे उतनी ही दूर है
जितनी आत्मा तेरे भीतर से।

तू दो चेहरों वाला था—
एक मेरे लिए,
एक बाकी दुनिया के लिए।
पर अब मैं देख चुका हूँ,
तेरा असली चेहरा—
सच की रोशनी में
काँपता हुआ, झूठ की राख से सना हुआ।

अब तुझसे कोई उम्मीद नहीं,
न कोई क्षमा, न कोई संवाद।
मैंने अपनी पवित्रता तेरे सामने रख दी थी—
और तूने उसे रौंद डाला,
जैसे वो कोई कीचड़ में गिरा हुआ पत्ता हो।

तू गया,
पर जो गया वो मैं नहीं—
मैं तो अब और मजबूत हूँ,
अपने टूटे हिस्सों को जोड़कर
एक नई पहचान बना रहा हूँ।

अब मैं तुझे देखता हूँ
और सिर्फ यही सोचता हूँ—
“कभी तुझ पर भरोसा किया था… कितनी भूल थी वो।”

पर ये भी सच है—
मेरी आत्मा अब आज़ाद है,
तेरी छाया से भी।


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