मृगतृष्णा

मृगतृष्णा के इस वीराने में  
दिल का दरिया बहक रहा है,  
तृष्णा के इस नशे में खोकर  
हर इक सपना भटक रहा है।  

आस का दीप बुझने को है,  
साँस की डोरी उलझ रही है।  
तिनके-तिनके की उम्मीदें,  
अधूरी राहों में बिखर रही हैं।  

धोखे की गलियों में सन्नाटा,  
रिश्तों के सौदे हो रहे हैं।  
सच की बुनियादें हिलने लगीं,  
झूठ के महल सज रहे हैं।  

तमन्नाओं का कोई किनारा नहीं,  
दर्द की बारिश थमने को नहीं,  
हर इक मोड़ पर इंतजार है,  
पर मंजिल का निशां कहीं नहीं।

अहम् अस्मि" – मैं हूं।

अंधकार और प्रकाश का संतुलन: एक आध्यात्मिक यात्रा

जीवन में अनेक बार हमारे सामने ऐसी चुनौतियाँ आती हैं जो हमारे आत्मविश्वास और हमारे ईश्वर में विश्वास की परीक्षा लेती हैं। ये चुनौतियाँ, चाहे वे भय, संदेह या दुख के रूप में हों, हमारी आत्मा की गहराइयों से जुड़ी होती हैं। इन परीक्षाओं से गुजरते हुए, हमें अपने अंदर के अंधकार और अपूर्णताओं का सामना करना पड़ता है। यह यात्रा केवल बाहरी दुनिया की नहीं होती, बल्कि हमारी आंतरिक दुनिया का शुद्धिकरण भी होता है। यही वह पवित्र साधना है जिसे हम आत्म-उत्थान या आत्मिक परिवर्तन कहते हैं।

अंधकार का सामना और आत्मा का पुनः एकीकरण

हर व्यक्ति के भीतर एक अंश ऐसा होता है जो अब तक न सुलझा हुआ होता है। यह हमारी अपूर्णताओं, आघातों और अतीत की पीड़ाओं का प्रतीक है। जब हम अपने भीतर के इन गहरे अंधकारों का सामना करते हैं, तो हम अपने अहंकार को जानने और उससे मुक्त होने की दिशा में बढ़ते हैं।

यह प्रक्रिया एक गहन मानसिक और भावनात्मक यात्रा है, जिसे हम ‘आत्मिक पुनः एकीकरण’ (soul fractal reintegration) कहते हैं। जब हम अपने भीतर के अंधकार को पहचानते हैं, तो उसे ठीक करने, रोने, छोड़ने और सबसे महत्त्वपूर्ण, प्यार देने का अवसर मिलता है। इस प्रक्रिया में हमारा अहंकार धीरे-धीरे शुद्ध होता जाता है और आत्मा का सच्चा स्वरूप प्रकट होता है।

जैसा कि भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं:

"ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्॥"
(भगवद्गीता 5.16)
अर्थात, "जिनका अज्ञान आत्मज्ञान द्वारा नष्ट हो चुका है, उनके भीतर परम सत्य का प्रकाश ऐसे फैलता है जैसे सूर्य का प्रकाश।"

अलकेमिकल शुद्धिकरण

अलकेमी, जिसका अर्थ है तत्वों का रूपांतरण, केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी होती है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें हम अपने दिल और आत्मा के हर अंश को शुद्ध करते हैं, इसे शुद्ध करते हैं और इसे अपने उच्चतर रूप में रूपांतरित करते हैं। यह यात्रा आसान नहीं होती, लेकिन जब हम अपने आंतरिक अंधकार और प्रकाश दोनों का सामना करते हैं, तो हम उस संतुलन को प्राप्त करते हैं जो हमें आत्मिक रूप से सशक्त बनाता है।

"तमसो मा ज्योतिर्गमय"
(बृहदारण्यक उपनिषद 1.3.28)
अर्थात, "मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो।"

यह श्लोक इस बात की याद दिलाता है कि हमारी यात्रा अंधकार से निकलकर प्रकाश की ओर होती है। लेकिन इस यात्रा में, हमें यह समझना चाहिए कि अंधकार केवल हमारी दुश्मन नहीं है; यह वह माध्यम है जो हमें प्रकाश की सच्ची महिमा का अनुभव कराता है।

अंधकार और प्रकाश का संतुलन

हमारी आत्मा का वास्तविक स्वभाव अंधकार और प्रकाश दोनों का संतुलन है। हम केवल प्रकाश नहीं हैं, और न ही केवल अंधकार। हम दोनों का मिश्रण हैं, और यही मिश्रण हमें संपूर्ण बनाता है। जब हम अपने भीतर इस संतुलन को पहचानते हैं, तो हम अपनी वास्तविक शक्ति को समझने लगते हैं।

हमारी आत्मा की यह यात्रा केवल आत्मिक परिवर्तन नहीं है, यह पूरी दुनिया को बदलने की क्षमता रखती है। जब हम अपनी आत्मा के सत्य को पहचानते हैं और अपने भीतर के अंधकार और प्रकाश दोनों का संतुलन पाते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को, बल्कि दुनिया को भी रूपांतरित करते हैं।

"असतो मा सद्गमय"
(बृहदारण्यक उपनिषद 1.3.28)
अर्थात, "मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।"

सत्य और प्रामाणिकता के मार्ग पर चलें

आत्मिक जागरण की यह यात्रा हमें सत्य और प्रामाणिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। जब हम अपने भीतर के अंधकार और प्रकाश दोनों को स्वीकारते हैं, तो हमें डरने की कोई आवश्यकता नहीं होती। हम अपने सत्य के साथ चलते हैं, बिना किसी भय के।

आत्मिक संतुलन और प्रामाणिकता की यह यात्रा हमें हमारे जीवन के उच्चतम उद्देश्य की ओर ले जाती है। जब हम इस यात्रा पर आत्मविश्वास और ईश्वर में विश्वास के साथ चलते हैं, तब हम अपने जीवन को, और अंततः पूरी दुनिया को, एक नया रूप देने की क्षमता रखते हैं।

यह यात्रा एक पवित्र साधना है, जिसमें हम अपने भीतर के अंधकार का सामना करते हुए प्रकाश की ओर बढ़ते हैं। यह प्रक्रिया हमें आत्मिक शुद्धिकरण और संतुलन की ओर ले जाती है, और यही वास्तविक आध्यात्मिक उत्थान है। जब हम इस यात्रा को स्वीकारते हैं और बिना किसी डर के अपने सत्य के साथ चलते हैं, तब हम अपनी आत्मा की पूर्णता को प्राप्त करते हैं।

"अहम् अस्मि" – मैं हूं।


श्वासों के बीच का मौन


श्वासों के बीच जो मौन है,
वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है।
सांसों के भीतर, शून्य में,
आत्मा को मिलता ज्ञान है।

अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन,
वह सत्य का अनमोल रत्न।
कण-कण में व्याप्त ब्रह्म सत्य,
साक्षात वही अटल तत्व।

"अहं ब्रह्मास्मि," गूँज उठे,
नभ से आती वो धारा।
मौन की गहराई में है,
सत्य का अमर उजाला।

"योगश्चित्तवृत्ति निरोधः,"
ध्यान की वो अनुभूति।
ब्रह्माण्ड का संवाद है ये,
आत्मा से आत्मा की गूंज।

श्वासों के बीच जो ठहराव है,
वह परम सत्य की पहचान है।
सुनो उस मौन को ध्यान से,
वहीं छिपा जीवन का वरदान है।


श्वासों के बीच का मौन



श्वासों के बीच जो मौन है,
वह ब्रह्माण्ड की गूढ़ कथा है।
आत्मा से जो संवाद करे,
वह रहस्य की अमिट रेखा है।

साँसों का आवागमन जब थमता है,
मन का सागर जब शांत होता है।
वहीं उस क्षण में सृष्टी का स्वर,
प्राणों में कोई गीत रचता है।

शून्येऽस्मिन यत्र तिष्ठति
वहां आत्मा को संदेश मिलता है।
मौनं परमं ध्यानं,
यह ब्रह्म-तत्व प्रकटित होता है।

क्षणभंगुर यह देह जब रुकती,
अंतर में कोई ज्योति जलती।
श्वासों के बीच का यह विराम,
अनंत का अनूठा संग्राम।

वह मौन, वह निःशब्दता,
आत्मा का सर्वोच्च मित्र बन जाती।
ब्रह्माण्ड की अनहद ध्वनि सुनाए,
जिसमें सारी सृष्टि सिमट जाती।

"मौनं हि परं ज्ञानं,"
यह वेदों ने सत्य प्रकटाया है।
श्वासों के बीच जो मौन है,
वही सृष्टि का नृत्य कहलाया है।

भाग्य रचयिता



कभी मत देखो वास्तविकता की ओर,
सपनों की उड़ान हो तेरी मंज़िल की डोर।  

सफलता का जोश हो तेरे दिल में,
मान ले, जीत तुझसे ही होगी हर पल में। 

भ्रम में जी, पर खुद पे यकीन रख,
तू ही नायक है, बस अपने कदमों पे टिक।

तू सोच, तेरी मंज़िल तेरे पास है, 
सपनों के सफर में, अब कोई न दूर है।

दुनिया जो कहे, वो कहती रहे,
तेरा भरोसा खुद पे, तुझे मंज़िल तक ले चले।

भविष्य की चिंता छोड़, बस आज का संकल्प कर, 
सपनों को हकीकत बना, तू अपने भाग्य का रचयिता बन |

हवा से सीख



हवा की सरगम को सुन, ये कहानियाँ सुनाती है,  
खामोशी की गहराई में, सच्चाई बयां होती है। 

जो शोर में नहीं मिलता, वो मौन की बात में है,
दिल की धड़कनों में छुपा, हर उत्तर साथ में है।

हवा से सीख, वो बहती है बेफिक्र होकर,
खामोशी से सीख, वो सिखाती है गहरे उतरकर।

दिल से पूछ, वो जानता है हर राह का इशारा, 
तेरी मंज़िल वहीं है, जहाँ है दिल का सहारा।

ये दुनिया बोलती है, बस सुनने का हुनर चाहिए,
दिल की बातों में, तुझे खुद से मुलाकात चाहिए।  


राम नाम की महिमा: सहस्त्र नाम के तुल्य



भारतीय संस्कृति और धर्म में भगवान राम का स्थान सर्वोपरि है। उनके नाम का स्मरण और जाप हर युग में भक्तों के लिए आध्यात्मिक शक्ति और प्रेरणा का स्रोत रहा है। राम नाम की महिमा को अनेक संतों, भक्तों और शास्त्रों में बखूबी वर्णित किया गया है। उन्हीं में से एक श्लोक है:

**राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।  
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥**

यह श्लोक "विश्णु सहस्रनाम" का एक अंश है, जिसमें भगवान विष्णु के एक हजार नामों का जप करने का महत्व बताया गया है। लेकिन इस श्लोक में कहा गया है कि "राम" नाम का जप करने से वही फल प्राप्त होता है जो एक हजार नामों के जप से मिलता है। राम नाम का स्मरण हृदय को शांति, मन को स्थिरता, और आत्मा को परम आनंद की अनुभूति कराता है।

**राम नाम की शक्ति:**

राम नाम की शक्ति अनंत है। यह नाम सिर्फ एक शब्द नहीं है, बल्कि यह शब्द हमारी आत्मा की गहराइयों को छूता है और हमें प्रभु के निकट ले जाता है। तुलसीदास जी ने "रामचरितमानस" में राम नाम की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा है:

**"राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।  
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार॥"**

अर्थात, राम नाम को अपने मन के दीपक के रूप में अपने जीभ रूपी द्वार पर रखो, इससे तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाले का अनुभव करोगे। यह नाम ऐसा दीपक है जो हमारी आत्मा के अंधकार को दूर करता है और हमें परमात्मा के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

**भक्तों की अनुभूति:**

सदियों से भक्तों ने राम नाम के प्रभाव को अनुभव किया है। संत कबीर, तुलसीदास, और मीरा बाई जैसे भक्तों ने राम नाम के जाप से ही जीवन की कठिनाइयों को पार किया और परम आनंद की प्राप्ति की। कबीर दास जी कहते हैं:

**"राम नाम का मंगल घट जो कोउ न्हावे बोर।  
जौ कोइ बोराई न्हाई के, सो ध्रुव होय समोर॥"**

अर्थात, राम नाम के मंगलकारी घट में जो स्नान करता है, वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है। राम नाम का जाप मनुष्य को सांसारिक मोह-माया से मुक्त कर उसे परमात्मा के चरणों में स्थिर करता है।

**राम नाम का महत्व:**

राम नाम का महत्व केवल आध्यात्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में भी देखा जा सकता है। जब मनुष्य राम नाम का स्मरण करता है, तो उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। वह व्यक्ति समाज में दूसरों के प्रति दयालु, करुणामय और सहानुभूतिशील बनता है। उसकी सोच, उसके कर्म, और उसका दृष्टिकोण सब कुछ राम नाम के प्रभाव से शुद्ध और निर्मल हो जाता है।


राम नाम की महिमा को शब्दों में बांधना कठिन है। यह नाम हमें केवल अध्यात्मिक शक्ति ही नहीं, बल्कि मानसिक शांति, संतोष और आनंद भी प्रदान करता है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें सब जगह प्रकाश फैलाती हैं, उसी प्रकार राम नाम का स्मरण हमारे जीवन को प्रकाशित करता है। हमें इस अनमोल धरोहर को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए और राम नाम का जाप करना चाहिए, ताकि हम भी उस दिव्य आनंद का अनुभव कर सकें जो सहस्त्र नामों के जप से प्राप्त होता है।

**"राम नाम की महिमा अपार,  
यह जीवन का सच्चा आधार।  
करो इस नाम का नित्य स्मरण,  
पाओ मोक्ष का परम द्वार॥"**

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा के इस वीराने में   दिल का दरिया बहक रहा है,   तृष्णा के इस नशे में खोकर   हर इक सपना भटक रहा है।   आस का दीप बुझने को है,   साँस क...