छाँव की तरह कोई था



कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं,
जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए।
मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ,
जहाँ कभी उसकी छाँव थी।

वो बोलता नहीं अब,
पर उसकी चुप्पी गूंजती है हर रोज़।
मैं मुस्कराने की कोशिश करता हूँ,
पर आँखों में वो ठहरा सा एक सवाल होता है।

कभी वो हँसी थी मेरे कमरे में,
अब सन्नाटा बसा है उसी जगह।
मैं दरवाज़ा खोलता हूँ हर रोज़,
जैसे शायद आज लौट आए वो सुबह।

उसके जाने से जो खालीपन आया,
वो सिर्फ जगह नहीं, एक आदत बन गया है।
मैं अब भी उसी आदत को जीता हूँ,
हर पल, हर साँस, हर ख्वाब में।

कुछ लोग जाते हैं जिस्म से,
पर रूह की गलियों में रह जाते हैं।
मैं उन्हें हर मोड़ पर ढूँढता हूँ,
और हर बार बस उनकी कमी पाता हूँ।


---


No comments:

Post a Comment

Thanks

छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...