जीवन की तरंग



मैं एक लहर हूँ,
कभी ऊँचाई छूता, कभी गहराई में डूबता।
एक शाश्वत स्पंदन,
जिसमें शिखर और गर्त दोनों समाए हैं।

जब मैं उठता हूँ,
तो लगता है जैसे आकाश मेरा घर हो।
हर किरण मुझमें नृत्य करती है,
हर स्वप्न मुझे अपना कहता है।

और जब गिरता हूँ,
तो सागर की गहराइयाँ मुझे बुलाती हैं।
अंधकार भी मेरा अपना सा लगता है,
शांति की बाहों में मैं समा जाता हूँ।

पर यह चक्र अनंत है,
हर उत्थान के बाद अवसान,
हर अवसान के बाद उत्थान।
यही तो नियम है, यही तो जीवन का संगीत।

मैं जानता हूँ,
न तो शिखर मेरा है, न गर्त।
मैं बस एक तरंग हूँ,
जो सदा बहती रहेगी, अनवरत, अनंत…


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