प्राकृतिक सौंदर्य से भरी कविता

पंछियों की खुशबू सा, तितलियों की लहर,
नदियों की गहराई से, झरनों की धार।

हवा की लहराती धारा, खेतों की हरियाली,
खलियान की खुशबू से, भरी हर चाली।

चीड़ के पेड़ की ऊंचाई से आँगन में छाया,
नाग देवता की पूजा से, भव्यता की माया।

प्राकृतिक सौंदर्य से भरी हर कविता,
जीवन की अनंत गाथा, निरंतर नई मीता।

प्रेम और संवाद की धारा, सदा बहती रहे,
सृष्टि की सुंदरता में, हमेशा बसती रहे।

इन सब रूपों में, प्रकृति की अनंत विलासिता,
यही है जीवन की सही विशेषता, यही है हमारी विरासत।

सर्दी में गर्मी, गर्मी में ठंड

सर्दी में गर्मी छूटी नहीं, गर्मी में ठंड है बढ़ी,
क्या यह बदलते मौसमों में है कोई रहस्य छुपी?

प्रकृति के खेल का है यह नया संगीत,
जो बदल रहा है आधे आधे रूप और रंग में।

सर्दी के मेंहदी छाये, गर्मी की धूप जवां,
जोड़ रहे हैं नाट्यम् अपनी खिलखिलाहट के खान।

ग्राम की धरती सोयी है अब आँगन में,
सर्दी के छटे जमीन पर धुप बिखरी है धूमिल निगाहों में।

प्रकृति का यह मेल मिलाप है सुन्दर,
जो दर्शाता है उसका विश्वास अतुल्य अद्भुत संगीत।

इस विचित्र खेल की खुद से ही बातें हैं कई,
सर्दी में गर्मी, गर्मी में ठंड, हर मौसम की लहर नयी।

श्वासों के बीच का मौन

श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...