लेखक: दीपक डोभाल
क्या कभी मानवता ने ऐसा समय जिया है जहाँ शांति हर दिशा में व्याप्त थी?
जहाँ युद्ध नहीं, डर नहीं, और नफ़रत नहीं — केवल समरसता, ज्ञान और सौहार्द?
जब हम "सबसे शांत युग" की खोज करते हैं, तो दो रास्ते खुलते हैं —
एक इतिहास के पन्नों की ओर और दूसरा आत्मा के भीतर की यात्रा की ओर।
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1. इतिहास में दर्ज शांति के स्वर्णिम युग
(i) पॅक्स रोमाना – Pax Romana (27 ई.पू. – 180 ई.)
स्थान: रोम साम्राज्य
सार: जब सम्राट ऑगस्टस के शासन से लेकर मार्कस ऑरेलियस तक लगभग 200 वर्षों तक रोमन साम्राज्य में आंतरिक शांति रही।
विवरण:
सीमाओं पर तो टकराव हुए, परन्तु साम्राज्य के भीतर कानून व्यवस्था, व्यापार और संस्कृति में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
कला, स्थापत्य और दर्शन का विकास।
(ii) गुप्त काल – भारत का 'स्वर्ण युग' (320–550 ई.)
स्थान: भारत
सार: चंद्रगुप्त प्रथम और समुद्रगुप्त जैसे शासकों के नेतृत्व में भारत में एक दीर्घकालीन शांति और समृद्धि का काल था।
विशेषताएँ:
आर्यभट, कालिदास जैसे विद्वानों का युग।
विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, साहित्य और दर्शन की उन्नति।
भारतवर्ष में धर्म, संस्कृति और ज्ञान की त्रिवेणी बहती थी।
(iii) सोंग राजवंश का युग (960–1279 ई.) – चीन
स्थान: प्राचीन चीन
सार: चीन का यह समय उच्च तकनीकी विकास, कला और प्रशासनिक दक्षता का प्रतीक रहा।
शांति के कारण:
कुशल प्रशासन और कन्फ्यूशियन विचारधारा।
युद्ध अपेक्षाकृत कम और समाज में संतुलन अधिक।
(iv) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का काल (1945–वर्तमान)
वैश्विक परिप्रेक्ष्य
सार: भले ही स्थानीय युद्ध हुए, परंतु तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ।
प्रगति:
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना
वैश्विक संवाद और तकनीकी क्रांति
लोकतंत्र और मानवाधिकारों का प्रसार
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2. जब आत्मा में बसी थी शांति: वैदिक युग और ऋषियों का काल
इतिहास की सीमाओं से परे, एक और युग था — ऋषियों का युग, जहाँ न कोई साम्राज्य था, न युद्ध।
वहाँ केवल आत्मचिंतन, प्रकृति से एकत्व और ब्रह्म की खोज थी।
संकेत मिलते हैं वेदों में:
> “संगच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।”
— ऋग्वेद 10.191.2
(“सभी एक साथ चलें, एक साथ बोलें, और एक जैसे विचार रखें।”)
इस समय को हम अद्वैत की अनुभूति का समय कह सकते हैं —
जहाँ मानव ने अपने अस्तित्व को प्रकृति और परमात्मा से जोड़कर देखा।
ना कोई राष्ट्र की सीमा थी, ना धन की लालसा — केवल ‘सत्य की साधना’ थी।
ऋषि याज्ञवल्क्य, ऋषिका गार्गी, ऋषि वशिष्ठ और महर्षि वाल्मीकि जैसे संतों ने
शांति को केवल सामाजिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर स्थिरता के रूप में देखा।
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3. शांति की परिभाषा: क्या केवल युद्ध का अभाव ही शांति है?
क्या वह युग वास्तव में शांत हो सकता है, जहाँ तकनीकी विकास हो पर ह्रदय अशांत हों?
असली शांति वहीं होती है जहाँ मन स्थिर हो।
यही कारण है कि ऋषि-मुनियों ने बाह्य शांति से ज़्यादा अंतर्मन की शांति पर ज़ोर दिया।
श्लोक:
> “शान्तिः शान्तिः शान्तिः।”
— उपनिषद
(तीन बार शांति — देह में, मन में, और आत्मा में)
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निष्कर्ष:
शांति केवल एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है — यह एक चेतना की अवस्था है।
जहाँ मनुष्य अपने भीतर उतरता है और अपने अस्तित्व को सम्पूर्ण सृष्टि से जोड़ता है।
इतिहास हमें उदाहरण देता है, परन्तु आध्यात्मिक परंपरा हमें अनुभव देती है।
इसलिए अगर पूछा जाए — दुनिया का सबसे शांत समय कौन-सा था?
तो उत्तर होगा:
"जब मानव ने युद्ध नहीं, ज्ञान को अपनाया। और जब मानव ने बाहर नहीं, भीतर यात्रा की।"
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