कोई आंधी मुझे डिगा नहीं सकती,
कोई तूफ़ान मुझे गिरा नहीं सकता,
कोई रास्ता मुझे रुकने नहीं देता,
तुम जो साथ हो, मेरा विश्वास हो।

हर मुश्किल को मैं मुस्कुरा के पार करूँ,
हर दर्द को तुमसे और सशक्त करूँ,
जिंदगी की हर चुनौती को आसान बना दूँ,
क्योंकि तुम मेरा सहारा हो, मेरा संबल हो।

जैसे सूरज को कोई बादल छुपा नहीं सकता,
वैसे ही मेरी शक्ति को कोई नहीं रोक सकता,
तुम्हारी छांव में ही तो मैं खड़ा हूँ,
तुम हो मेरा विश्वास, तुम हो मेरा राहबर।

सपनों की उड़ान को कोई पंख नहीं काट सकता,
मेरे इरादों को कोई तोड़ नहीं सकता,
तुम हो मेरे साथ तो कुछ भी असंभव नहीं,
क्योंकि तुम मेरा साथ हो, तुम मेरा मार्गदर्शक हो।


तुम्हारी छांव में


कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।

सपनों के रास्ते, जो कांटे थे पहले,
अब फूलों से महकते हैं, तुम्हारी मूरत से।
मेरे डर और शंकों को तुमने सहेजा,
तुम ही तो हो जो मेरी ताकत का कारण हो।

वो तूफ़ान जो कभी मुझसे भिड़ते थे,
अब मुझसे सिर्फ टकराते हैं,
क्योंकि तुमने मेरी आत्मा को शक्ति दी,
तुम्हारी मुस्कान में दुनिया जीने की वजह है।

ना कोई आसमान इतना ऊँचा,
जो मेरी उड़ान को रोक सके,
कभी जो डर था, अब उम्मीद है,
क्योंकि तुम मेरी हिम्मत हो, तुम मेरी शक्ति हो।

राहों में कांटे और रेत की आंधियाँ,
बस तुम्हारी यादों में खो जाती हैं,
तुम हो साथ, तो कोई बाधा नहीं है,
तुमसे जुड़ी हर सांस में एक नई जिन्दगी है।

इस जीवन के हर संघर्ष में,
हर दर्द में, हर आंधी में,
मुझे बस तुम्हारी जरूरत है,
क्योंकि तुम हो, और यही मेरा विश्वास है।

कोई आग मुझे नहीं जला सकती,
कोई जंग मुझे नहीं हिला सकती,
कोई पहाड़ मुझे नहीं रोक सकता,
क्योंकि तुम मेरी राह में हाथ थामे हो।


प्रेम सम्राट


जब प्रेम से हट जाएं वासना और मोह,
जब प्रेम हो निर्मल, निष्कलंक, अद्वैत,
जब प्रेम में हो सिर्फ देना, न कोई माँग,
जब प्रेम हो समर्पण, न कोई आशा,
जब प्रेम हो सम्राट, न कोई भिखारी;
जब आप प्रसन्न हों इस बात पर
कि किसी ने आपके प्रेम को अपनाया,
तब समझो, सच्चा प्रेम है।

प्रेम की नदी बहे बिना किनारे,
प्रेम की धूप फैलाए उजाले,
प्रेम की चाँदनी छाए बिना रात,
प्रेम की गंगा हो पवित्र, सात्विक,
जब प्रेम हो निःस्वार्थ, निःशंक, निराकार,
तब समझो, प्रेम का साम्राज्य है।

प्रेम हो जब मुक्त, बिन किसी बंधन के,
प्रेम हो जब संतुष्टि, बिना किसी तृष्णा के,
प्रेम हो जब संवेदनाओं का पर्व,
प्रेम हो जब आत्मा की पुकार,
तब समझो, प्रेम का महासागर है।

प्रेम हो जब संतोष, बिन किसी अपेक्षा के,
प्रेम हो जब अभय, बिना किसी डर के,
प्रेम हो जब आनंद, बिना किसी कारण के,
प्रेम हो जब अनंत, बिन किसी सीमा के,
तब समझो, प्रेम का परम सत्य है।

तब प्रेम बन जाता है शाश्वत,
प्रेम बन जाता है असीम,
प्रेम बन जाता है परिपूर्ण,
प्रेम बन जाता है दिव्य,
तब प्रेम है, सच्चा प्रेम।

छाता और आस्था


L

बरसात जब थमती है,  
छाता एक बोझ बन जाता है।  
जैसे जब स्वार्थ समाप्त हो जाए,  
निष्ठा का अंत हो जाता है।  

फिर वही छाता जो था सुरक्षा का ढाल,  
अब घर के कोने में बेजान सा पड़ा है।  
कोई उसे नहीं चाहता, जब तक फिर से,  
बादल न बरसने लगें आसमान में।  

पर जब कोई उसे खोजने निकलता है,  
वो छाता फिर कहीं खो चुका होता है।  
याद आती है उसकी, पर छाता अब,  
कभी नहीं लौटता उन्हीं हाथों में।  

वो अपनी प्रकृति में अटल है,  
जो उसे अपनाए, उसकी सेवा में तत्पर है।  
अब वो किसी और की छांव बना,  
उसे नया विश्वास दे रहा है।  

पर इस बार वो छाता सतर्क है,  
समर्पण के संग परिपूर्ण है।  
हर मुस्कान सच्ची नहीं होती,  
कुछ बस जलन का आवरण हैं।  
हर वार का प्रतिकार आवश्यक है,  
तभी संतुलन बना रहता है संसार में।  


प्रेम का सच्चा रूप


जब तुम प्रेम से मोह और आसक्ति हटाते हो,  
जब तुम्हारा प्रेम शुद्ध, निष्कलंक, निराकार हो,  
जब तुम प्रेम में केवल देते हो, माँगते नहीं,  
जब प्रेम केवल एक देना हो, लेना नहीं,  

जब प्रेम एक सम्राट हो, भिखारी नहीं,  
जब तुम खुश होते हो, क्योंकि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकार किया,  
तब ही प्रेम का सच्चा रूप प्रकट होता है,  
तब ही प्रेम का असली मतलब समझ आता है।  

तब प्रेम में कोई शर्त नहीं होती,  
तब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं होता,  
तब प्रेम केवल एक अनुभव होता है,  
तब प्रेम केवल एक संवेदना होती है।  

यह प्रेम है, जो आत्मा को मुक्त करता है,  
यह प्रेम है, जो दिल को हल्का करता है,  
यह प्रेम है, जो जीवन को अर्थपूर्ण बनाता है,  
यह प्रेम है, जो हमें सच्चे सुख का एहसास कराता है।  

प्रेम में जब यह भाव आते हैं,  
तब जीवन में एक नई रोशनी जगमगाती है,  
तब हर दिन एक नया उत्सव बन जाता है,  
तब हर पल एक नई कविता बन जाता है।  

प्रेम का यही सच्चा रूप है,
जो हर दिल को छूता है,
जो हर आत्मा को जीता है,
जो हमें इंसान से इंसान बनाता है।

प्रकृति का अनुपम सौंदर्य



मनुष्य ने रची हैं अनेकों कृतियाँ,
मशीनें, इमारतें, और अभूतपूर्व कलाएँ।
पर इन सबके पार, जो खड़ा मुस्कुरा रहा है,
वह है प्रकृति, सृष्टि की सच्ची काया।

सूरज की पहली किरण जब धरती पर पड़े,
उसकी सुनहरी छवि को कौन रच सके?
बादलों का नृत्य और वर्षा की बूँदें,
इनकी ध्वनि से सुंदर कौन गीत गा सके?

पर्वतों की ऊँचाई और सागर की गहराई,
इनकी विशालता के आगे सब बौने नज़र आएँ।
हर पेड़ की छाया, हर फूल की खुशबू,
इनकी कोमलता को कोई कैसे रच पाए?

चाँदनी रात का उजाला, नदियों का बहाव,
पंछियों का संगीत, जंगलों का स्वाभाव।
यह सब है प्रकृति का अनुपम उपहार,
जिसके आगे हर मानव रचना बेकार।

मनुष्य ने बनाए महल और पुल,
पर प्रकृति ने दिए जंगल और झरने कुल।
हमने रची कल्पनाएँ, मशीनों की सीमाएँ,
पर प्रकृति ने रचा अनंत का गीत सुनाएँ।

तितलियों के रंग, मोर का नृत्य,
हर जीव में बसा सृष्टि का मंत्र।
आकाश का नीला और धरती का हरापन,
इन रंगों का मुकाबला कौन कर सकता है?

प्रकृति की कला में छिपा है ईश्वर का स्पर्श,
जो देता है जीवन को सच्चा उत्कर्ष।
उसकी रचनाओं का कोई सानी नहीं,
उसकी सादगी में भी छुपा है बेजोड़ सौंदर्य कहीं।

तो देखो, सुनो, और महसूस करो इस कला को,
जिसे किसी चित्रकार ने नहीं, सृष्टिकर्ता ने रचा।
प्रकृति का यह अनुपम सौंदर्य सिखाता है,
सादगी में ही छिपा है जीवन का असली मज़ा।


पारदर्शी कला का स्वप्न



मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसी कला का,
जो सत्य का आइना हो, छलावा नहीं।
जहां रंगों के बीच छिपा न हो संसार,
बल्कि हर रंग से झलके जीवन की कहानी।

एक ऐसी कला, जो पर्दों को हटाए,
जिसे देख हृदय सच्चाई को अपनाए।
जहां हर रेखा बोले अपने आप,
जहां हर छवि हो जीवन का आलाप।

न हो उसमें झूठ, न कोई आडंबर,
केवल सरलता का हो उसमें अंबर।
जहां हर छवि में दिखे प्रेम का प्रकाश,
और हर छाया में छुपे न हो कोई आश।

वह कला हो एक खिड़की सी निर्मल,
जहां से झांको तो दिखे जीवन का मंगल।
जहां हर दृश्य हो आत्मा का प्रतिबिंब,
जहां हर रचना हो समय का प्रतीक।

वह कला न सीमित हो किसी फ्रेम में,
न बंधे केवल शब्दों या रंगों के गेम में।
वह कला हो अंतर्मन का दर्पण,
जहां झलकता हो हर जीव का स्पंदन।

मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो न केवल सुंदर, बल्कि सच्ची हो।
जो दिखाए दुनिया को वैसी जैसी है,
और प्रेरित करे इसे वैसी बनाने की।

ऐसी कला, जो सृजन की आत्मा हो,
और जिससे झलके हर जीवन की छवि।
मैं स्वप्न देखता हूँ उस कला का,
जो पारदर्शी हो, और मुक्त की नवी।


Into the wild

The statement "Into the Wild” is a movie about the desire for freedom that feels, in itself, like the fulfillment of that desire" suggests that the film explores the theme of freedom in a way that is both authentic and satisfying. It implies that the movie not only depicts the longing for freedom but also captures the essence of what it means to be free. This statement also suggests that the director, Sean Penn, has skillfully executed this theme in a way that is not simplistic or superficial. Overall, this statement sets high expectations for the movie's portrayal of freedom and its ability to evoke a strong emotional response from the audience.
In the wild, Christopher roams free,
His spirit soars, his soul set free.
The wilderness, his solace, his home,
A place where he's never felt alone.

The mountains stand tall, their peaks kissed by the sun,
Their shadows stretch long as the day draws to a close.
The trees sway in the wind, their leaves rustling like whispers,
Nature's symphony echoes through the valleys and hills.

Christopher's footsteps crunch on the forest floor,
His heart beats in time with the rhythm of the land.
He breathes in the crisp air, his lungs filling with life,
His soul awakens as he becomes one with the wild.

In this place of solitude and simplicity,
Christopher finds a peace that he's never known before.
He learns to live off the land, to hunt and forage,
To find joy in the small things and to let go of more.

As he journeys onwards, he meets those who've been before him,
Each with their own story to tell. They share their wisdom and their woes.
Christopher listens intently, his heart open and receptive,
Learning from their experiences as he goes.

And so Christopher continues on his path,
Through trials and triumphs he carries on. His spirit unbroken and true.
For in this wilderness he has found a purpose, a calling,
A life that is simple yet profoundly true.

In search of freedom, he set out alone,
A top student, an athlete, a soul unknown.
His heart yearned for the wild, to be reborn,
He donated his savings, and hitched his way to Alaska's morn.

The road ahead was long and rough,
But he was determined to prove enough.
He met strangers along the way,
Each one leaving an impression that would not fade away.

The wind whispered secrets in his ear,
The mountains roared like a lion's fear.
The sun set in a blaze of red and gold,
A sight that left him breathless and bold.

He learned to live off the land,
To hunt and fish with a steady hand.
He found solace in the stillness of the night,
And danced with the stars in their heavenly light.

But the wilderness was not kind,
It tested him in ways he could not find.
He battled hunger and thirst and cold,
But he refused to let go of his hold.

In the end, he found what he sought,
A sense of purpose that he could not bought.
He left this world with a heart full of grace,
A true wanderer who found his own place.

आत्मा का स्वरूप



उसकी देह पे हंसी आई तुमको,
जो बस एक परछाईं है,
हड्डी, माँस और रक्त की काया,
क्यों इसमें लिप्त होना मन चाही है।

क्या यह सब जानने के बाद भी,
तुमको सच का एहसास नहीं,
जीवात्मा का कोई आकार नहीं,
न ही कोई रूप, कोई वास नहीं।

वह आत्मा है, अनंत, अमर,
जिसमें न रंग, न शरीर का भार,
यह देह तो है बस आभासी परछाई,
माया के जाल में बंधी एक तरंग की काई।

तुम कहो कैसे, किसको लज्जा दें,
जिसे न समय बाँध सकता है, न जगह,
यह माटी का पुतला ढलता-ढलता खो जाता,
पर वह आत्मा का न स्वरूप, न परदा है।

जब आत्मा की पहचान हो जाए,
तो देह की सीमाओं में न बंध पाए,
तब हर देह में देखो दिव्यता,
तुम्हारी चेतना में आए वो जागरूकता।

अब जागो इस सच की ओर,
जहाँ शरीर नहीं, आत्मा का नृत्य है,
आकार रहित, प्रकाश का एक बिंदु,
जो परमात्मा से न कभी अलग है, न बिछुड़ता।

तो जब तक हो यह जीवन का बोध,
उसको नीचा दिखाने का विचार छोड़ो,
हर देह में झाँको आत्मा का अनंत स्वरूप,
बस यही है जागृति, यही है आत्मा का अनुरूप।


निष्कलंक प्रेम


जब प्रेम से हट जाएं लगाव और मोह,
हो जाए जब वह शुद्ध और निराकार,
न हो कोई मांग, बस देना ही देना,
प्रेम बने सम्राट, न हो कोई भिक्षु का द्वार।

जब खुशी मिलती हो केवल इस बात से,
कि किसी ने तुम्हारा प्रेम स्वीकारा है,
बिन किसी स्वार्थ के, बिन किसी शर्त के,
प्रेम हो जैसे निर्मल जलधारा है।

न हो कोई चाहत, न हो कोई बंधन,
प्रेम का अर्थ हो केवल समर्पण,
निस्वार्थ भाव से, पवित्र मन से,
प्रेम हो जैसे आत्मा का वंदन।

जब प्रेम को समझो केवल देने का अधिकार,
तो दिल हो जाता है वाकई उदार,
निष्कलंक, निर्मल, निस्वार्थ हो जब प्रेम,
तब जीवन हो जाता है अद्भुत, निस्संदेह।

प्रेम पथ

निश्छल प्रेम का रूप है अलौकिक,
न चाहत की लौ, न वासना की ढाल।
निस्वार्थ समर्पण का पथ है निर्मल,
प्रेम का सागर है, जिसमें ना कोई ख्वाहिश की चाल।

प्रेम है जब मासूम और निराकार,
जब दिल से देना हो और न कोई माँग।
जब प्रेम हो केवल एक अर्पण,
प्रेम सम्राट बनता है, न कि भिक्षुक की तरह।

सुखी हो तुम केवल इसलिए,
कि किसी ने तुम्हारे प्रेम को अपनाया।
न मोल की इच्छा, न लोलुपता की चाह,
बस प्रेम का पथ अपनाया।

प्रेम वो है जो आत्मा को छू जाए,
नजरअंदाज करें दुनिया के सारे शिकवे।
प्रेम समर्पण का एक गहरा सागर है,
जहाँ बस है अमृत का पान।

#### अनंत ख्वाहिशें

Here's a poem in Hindi inspired by the themes:  keeping it within tasteful boundaries:

#### अनंत ख्वाहिशें

दिन रात चलती हैं ये ख्वाहिशें,
सपनों में लिपटी अनंत आशाएँ।
हर पल, हर सांस में बसे,
वो रूह की गहराइयाँ।

संगम का लम्हा, मस्ती की कहानी,
जब दो दिल मिलते हैं, होती एक रवानी।
आँखों की चमक, होंठों की मुस्कान,
छूने से पहले ही हो जाती पहचान।

भीड़ में मिलती कभी अनजान राहत,
साथ गुज़ारें वो हसीन रातें।
मोहब्बत के संग, उड़ानें हज़ार,
हर चाहत की पूरी हो दरकार।

तृष्णा की तरह, ललकती हर चाहत,
रंगीन रातें, वो प्यारी अदावत।
एक साथ, कई साथ, ख्वाबों की ज़ंजीर,
हर रस का स्वाद, हर पल का नशा गहरा।

फिर भी दिल में बसी एक मासूमियत,
सादगी में छुपी होती एक नज़ाकत।
सपनों के शहर में, सच की उड़ान,
ख्वाहिशों की दुनिया, हर तरफ़ अरमान।

जुड़ते हैं दिल, फिर होती जुदाई,
मस्ती में लिपटी है ये ज़िंदगी की परछाई।
हर ख्वाब में, हर पल में, बसते हैं सवाल,
चाहतों के सागर में, तैरते हैं ख्याल।

अपनी क्षमता को व्यर्थ न जाने दो

क्यों रुकूं मैं, जब राहें बुला रही हैं, क्यों थमूं मैं, जब हवाएं गा रही हैं। यह डर, यह संशय, यह झूठा बहाना, इनसे नहीं बनता किसी का जमाना। आध...