घर से बाहर, या घर में, हर मन का अपना मन्ज़िल अना।
सड़कों की धूल, या घर की शांति,
दोनों हैं अनमोल, हर रोज़ की ये कहानी।
चलना है बाजार, या बैठना छत पर,
हर पल में भरी, है अलग अलग
ये रंगतरंग जीवन की धरती पर।
परंतु जब छूट जाए घर की मिठास,
तो बस एक चाहत होती है, वहाँ वापस।
घर हो या दुनिया की सैर,
सुखी हूं तभी, जब हूं घर में तुम्हारे बीच।
No comments:
Post a Comment
Thanks