धूप की किरणों में खो जाती हूँ,
बारिश की बूंदों में बिखर जाती हूँ।
सूरज की चाह में, मैं जल जाती हूँ,
पर गम की धुंध में, फिर भी मिलती हूँ।

यारा सूरज की चाह का हारा,
गम की धुंध में, खो गया बस हारा।
पर मिलती हूँ मैं हर रोज नया सफर,
गम की धुंध में भी, खोजती हूँ खुद को बार-बार।

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