घर से निकल,

घर से निकल, पहाड़ों की उचाइयों से,
शहरों की गलियों में बस खो जाए।
जो चीरती है सड़क, वहां नई दुनिया बसी है,
उस दुनिया में अपने सपनों को सजाए।

धूप में जलती राहों पर,
उसके कदम बढ़ते हैं, नयी राहों में लहराए।
शहर की शोर में, वह अपना स्वर सुनता है,
अपने अंतर की गहराई में, अपनी दुनिया बसाए।

जैसे सितारों की चमक उसके सपनों को रोशन करे,
वह अपने हसीन सपनों को साकार करे।
शहरों की भीड़ में भी, वह अपने लिए स्थान बनाए,
सपनों के पंखों पर उड़ान भरे, अपने सपनों को सच कराए।

धूप, धूल, शोर से लड़कर,
वह अपने सपनों को साकार करने की ओर बढ़ता है चलकर।
पहाड़ों की उचाइयों से शहरों की गलियों में,
उसकी रोमांटिक कहानी अब नयी ध्वनि में गूंजती है, नई यादों में।

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