पहाड़ों से निकला, बदला न कुछ मैं

पहाड़ों से निकला, बदला न कुछ मैं,
पर सब कुछ बदल गया, रास्ते और मैं।
नए लोग, नए दोस्त, नई जगह,
हर कोने में बसा, एक नया सपना।

नए खान, नई सोने की चाह,
विचारों में डूबा, मैं एक समय रात की बात।
क्या हूं मैं नया, या बस वही पुराना,
क्या है मेरे अंतर में, यह जानना मुश्किल समाना।

पर विश्वास अपने आप में, मैं बढ़ता जा रहा हूं,
जीवन के सागर में, अपनी नौ को लहराता हूं।
कुछ करने की चाह, कुछ बनने की तमन्ना,
है मेरे मन में, जीने की नई रूह का उत्साह।

बड़ा करने की लालसा, ज़िंदगी को चुनौती देना,
पास है मुझे जीने का सही मायना।
इस संगीन दिल से, जीवन के मेले में,
मैं आगे बढ़ता हूं, अपने सपनों के साथ, नई दिशा में।

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