भाग 3: प्रथम विश्व युद्ध और हिटलर का उदय


🌍 प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) और जर्मनी की स्थिति

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने न केवल जर्मनी बल्कि पूरी दुनिया को एक भयंकर संकट में डाल दिया था। जर्मनी, ऑस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य, और ओटोमन साम्राज्य जैसे केंद्रीय शक्तियों का हिस्सा था। इस युद्ध में जर्मनी ने अनेक देशों से संघर्ष किया, और अंत में 1918 में युद्ध के अंत के साथ, जर्मनी को हार का सामना करना पड़ा।

युद्ध के परिणामस्वरूप, जर्मनी पर शांति संधि, "वर्साय संधि" (Treaty of Versailles) को लागू किया गया, जो न केवल जर्मनी की सीमाओं को संकुचित करता था, बल्कि उन्हें भारी मुआवजे का भुगतान करने का भी आदेश दिया गया था। वर्साय संधि ने जर्मनी को आर्थिक और राजनीतिक रूप से बहुत कमजोर कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, जर्मनी में भारी महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक अशांति फैल गई।


🏛️ नाजी पार्टी का गठन और हिटलर का उदय

वर्साय संधि के कारण जर्मनी में घोर असंतोष था, और इस असंतोष का फायदा उठाने के लिए कई राजनीतिक पार्टियाँ उभरीं। इनमें से सबसे प्रमुख था "नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी" (National Socialist German Workers' Party), जिसे हम नाज़ी पार्टी के नाम से जानते हैं।

इस पार्टी के नेता थे एडोल्फ हिटलर, जिन्होंने जर्मनी के अंदर भयंकर असंतोष का फायदा उठाते हुए अपने विचारों को प्रसारित किया। हिटलर ने जर्मनी को एक सशक्त राष्ट्र बनाने के लिए "अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने", "राष्ट्रवाद" और "यहूदी विरोधी" विचारधाराओं को बढ़ावा देना शुरू किया। उनकी विचारधारा ने बहुत से जर्मन नागरिकों को आकर्षित किया, जिनका मानना था कि वर्साय संधि ने जर्मनी को अपमानित किया है और उसे पुनः सम्मानित करने का समय आ गया है।

हिटलर ने अपनी भाषण कला और नेतृत्व क्षमता से लाखों लोगों को प्रभावित किया। वह जर्मनी के लोगों को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गए कि वह उनकी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं और जर्मनी को "विलुप्त हो चुके गौरव" तक पहुँचाएंगे।


🕊️ हिटलर का यहूदी विरोधी दृष्टिकोण

हिटलर का यहूदी विरोधी दृष्टिकोण उसका सबसे प्रमुख और निंदनीय विचार था। वह यह मानते थे कि यहूदी समुदाय ने जर्मनी की हार का कारण बने और यह देश के लिए खतरे का स्रोत हैं। हिटलर ने यहूदियों को राष्ट्र के दुश्मन के रूप में प्रस्तुत किया, और यह विचारधारा नाज़ी पार्टी के प्रचार का केंद्रीय तत्व बन गई।

हिटलर का मानना था कि जर्मन जाति "आधिकारिक और शुद्ध" जाति है, और यहूदियों को उनके समाज से बाहर करना जरूरी था। यहूदी विरोधी विचार केवल हिटलर के भाषणों तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कानूनों और नीतियों के माध्यम से यहूदियों के खिलाफ भेदभाव को संस्थागत रूप दिया।


🏢 नाजी पार्टी का सत्ता में आना

1920 के दशक के अंत में और 1930 के दशक की शुरुआत में, जर्मनी में नाज़ी पार्टी का प्रभाव बढ़ने लगा। 1933 में, हिटलर ने जर्मनी के चांसलर के रूप में सत्ता संभाली। चांसलर बनने के बाद, हिटलर ने अपने विरोधियों को दबाने के लिए तानाशाही शासन स्थापित किया और अपनी नीतियों को लागू करना शुरू किया।

हिटलर ने एक तानाशाही सरकार स्थापित की, जिसमें नाजी पार्टी का पूर्ण नियंत्रण था और अन्य सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद, नाज़ी शासन ने यहूदियों के खिलाफ दमनकारी कानूनों को लागू करना शुरू किया, जैसे कि "नूरेमबर्ग कानून" (Nuremberg Laws) जो यहूदियों के नागरिक अधिकारों को प्रतिबंधित करते थे।


✡️ यहूदियों के खिलाफ उत्पीड़न की शुरुआत

1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद, जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ एक व्यवस्थित उत्पीड़न की शुरुआत हुई। यह उत्पीड़न धीरे-धीरे बढ़ा और 1938 के "क्रिस्टल नाइट" (Kristallnacht) के दौरान, जर्मनी और ऑस्ट्रिया में यहूदियों के घरों, दुकानों और उपासना स्थलों को नष्ट कर दिया गया। इस घटना को नाज़ी शासन द्वारा आयोजित किया गया था और यहूदियों के खिलाफ हिंसा को प्रोत्साहित किया गया था।

यह घटना यहूदियों के खिलाफ नाजी शासन की रणनीति के एक महत्वपूर्ण चरण का हिस्सा थी, जिसका उद्देश्य यहूदियों को समाज से बाहर करना और उनके अस्तित्व को समाप्त करना था।


निष्कर्ष

इस भाग में, हमने देखा कि कैसे प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में असंतोष और आर्थिक संकट ने हिटलर के नेतृत्व में नाज़ी पार्टी के उभार का रास्ता खोला। हिटलर ने जर्मनी को एक "शुद्ध" राष्ट्र बनाने का सपना दिखाया, जिसके परिणामस्वरूप यहूदियों के खिलाफ भयावह उत्पीड़न की शुरुआत हुई। अगले भाग में, हम देखेंगे कि कैसे नाज़ी शासन ने होलोकॉस्ट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया और किस प्रकार लाखों यहूदियों की हत्या की गई।



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