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ना वासना बुरी है, ना विरक्ति श्रेष्ठ,
जरूरत है बस समभाव की दृष्टि।
देह है तो भाव हैं, भाव हैं तो प्रेम,
प्रेम है तो संयम भी अति आवश्यक नेम।
सीख ले तू देह का भी ध्यान,
ना दमन कर, ना दे बेजा मान।
आत्मा और शरीर का यही संवाद,
बनता है जीवन का असली उन्माद।
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