तुम्हारा दिल और मेरा दिल,
जाने कितने युगों से,
मिलता रहा है, बिछड़ता रहा है,
फिर भी हर बार,
एक दूसरे को पहचान ही लेता है।
शायद पहली बार,
किसी वटवृक्ष की छांव तले,
हमने एक-दूसरे को देखा था।
तुम्हारी आंखों में जो स्नेह था,
वह मेरी आत्मा में गहराई तक उतर गया।
फिर किसी और जीवन में,
हमने साथ बहाई थीं,
किसी शांत नदी की धाराएं।
तुम्हारी हंसी उस समय,
जैसे जलतरंग बजा रही थी।
कभी हम फूलों के साथ खिले,
तो कभी पतझड़ के संग झरे।
पर हर बार,
तुम्हारा और मेरा मिलन,
एक अपरिभाषित संगीत रचता रहा।
"यदृच्छया च मत्स्वप्नेषु हृदयस्पर्शमागतम्।
सदैव पुनर्मे हृदये च प्रतिध्वनिः।"
हर जन्म में,
तुम्हारे हृदय की धड़कन,
मेरे हृदय के लिए परिचित रही।
हम दोनों जैसे,
किसी पुराने ग्रंथ के पन्ने,
जो समय के चक्र में अलग हुए,
पर फिर जुड़ गए।
आज जब तुम्हें देखता हूं,
तो एक गहरी शांति छा जाती है।
जैसे युगों का सफर थम गया हो।
तुम्हारा और मेरा दिल,
सिर्फ दिल नहीं,
दो आत्माओं का अनादि प्रेम है।
तुम्हारे साथ,
हर बार लगता है,
यह आखिरी मिलन नहीं,
बल्कि हर जन्म का पहला।
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