हम इंसान, जो शांति और संतुलन के लिए बने थे,
आज उसी शांति को खोते जा रहे हैं।
हमने अपनी आदतें बदल डालीं,
व्यस्तता, घड़ी की टिक-टिक, और निरंतर सूचनाओं में खो गए।
हमने शांत समय को उत्पादकता से बदल दिया,
संबंधों को स्क्रीन में कैद कर लिया,
और आराम को दोषी भावना में समेट लिया।
हमारी आत्मा और शरीर अब यह कीमत चुका रहे हैं—
चिंता, थकावट, और भीतर की खालीपन।
लेकिन क्या सच्ची ताकत यही है,
कि हम जितना कर सकें उतना करें?
या फिर,
वास्तविक शक्ति वही है जो हम धीमे-धीमे चलते हैं,
चुप्पी में शांति पाते हैं,
और संतुलन को फिर से अपना लेते हैं।
हमारे लिए असली संघर्ष यह नहीं है
कि और कितना हम कर सकते हैं,
बल्कि यह है कि कैसे हम खुद को
रुकने, आराम करने और शांति में रहने का समय दे सकते हैं।
सच्ची शक्ति वह है जो अपनी गति को जानती है,
जो खुद को समय देती है,
क्योंकि शांति ही असल में संतुलन और खुशी का रास्ता है।
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