कभी कोई साथ चलता है,
तो हम खुद को उनके साये में पहचानते हैं।
और जब वो साया छूट जाता है,
तो लगता है जैसे खुद से भी दूरी बन गई हो।
लेकिन वही पल...
जब सब छिनता है,
एक दरवाज़ा खुलता है भीतर —
जहाँ हम अपने असली स्वरूप से मिलते हैं।
दूसरों की उपस्थिति हमें आकार देती है,
पर हमारी प्रतिक्रिया — वो हमारी शक्ति है।
मैंने जाना, टूटने में ही जुड़ाव है,
और खोने में ही खुद को पाने का रास्ता।
हर बिछड़ाव, हर बदलाव
मुझे एक नया “मैं” दिखाता है —
जो पहले कभी देखा ही नहीं था।
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