कभी गर्मी में मेहनत करते,
आधी छुट्टी में फीस भरते!
अब तो यूनिवर्सिटी के दरवाज़े पर,
लोन के बही खाते पढ़ते!
क्लास में घुसो, दिमाग को धो लो,
PPT घसीट के पास हो लो!
प्रोफेसर खुद गूगल से सीखें,
हम कहें— "सर, बस ज्ञान दो!"
पर ज्ञान तो अब बिकाऊ ठहरा,
EMI में टुकड़ों में बंटा!
डिग्री मिली, नौकरी नहीं,
पर ब्याज हर महीने कटा!
कभी विद्या थी साधना जैसी,
अब MBA का पैकेज देखो!
ज्ञान नहीं, ब्रांडिंग बिकती,
Resume में Name Tag देखो!
लोन में घर, लोन में गाड़ी,
अब लोन में डिग्री का फंडा!
कब कमाएँ, कब चुकाएँ,
बना दिया हमको गुलामों का झुंडा!
तो भाइयों बहनों, ज्ञान बटोरो,
पर लोन का जंजाल न ओढ़ो!
नालंदा में लोन नहीं था,
फिर भी ज्ञानी वहाँ जोड़ा!
— दीपक दोभाल
No comments:
Post a Comment
Thanks