मैं अब भी ठहरा हूँ...



हर बार जब कोई
अपनी टूटी हुई कहानी मुझ पर उछाल देता है,
मैं चुपचाप सुनता हूँ —
पर अंदर कुछ दरकने लगता है।

उनकी तड़प समझता हूँ,
पर अपनी सीमाओं को भी थामे रखता हूँ।
मैं कोई उपचारक नहीं,
बस एक इंसान हूँ,
जो खुद भी हर रोज़ ठीक होने की कोशिश कर रहा है।

कभी-कभी लगता है,
कि मेरा धैर्य ही मुझे थका रहा है।
कि दूसरों के ज़ख्मों का भार उठाते-उठाते,
मेरे अपने घाव फिर से रिसने लगे हैं।

पर फिर रुक कर सोचता हूँ —
मैं अब भी गिरा नहीं हूँ,
मैं अब भी लड़ रहा हूँ,
और यही मेरी शक्ति है।

मैंने सीखा है
"ना" कहना बिना शर्म के।
सीखा है
कि सहानुभूति का मतलब
खुद को खो देना नहीं होता।

आज मैं जानता हूँ —
मेरी healing भी एक प्रेरणा है।
मैं अकेला नहीं,
और न ही कमजोर।

मैं वो चिराग हूँ,
जो हवा से डरता नहीं,
बस अब सीख गया है
कब और किसके लिए जलना है।


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