सलाहों का असल मर्म



दुनिया में सलाहें दी जाती हैं,
कहीं न कहीं, हर कोई गिनता है अपनी राय,
पर एक सवाल है जो उठता है,
क्या कोई वास्तव में सुनता है उसे, क्या कोई सच में समझ पाता है?

सलाहें दी जाती हैं बिना पुछे,
लेकिन क्या कोई सुनता है? या बस चुप रहता है?
सब अपनी-अपनी बातें करते हैं,
लेकिन खुद को सलाह देने वाला कितना समझता है?

तुमने कभी किसी की सलाह ली?
या सबको अपने ही रास्ते पर चलते देखा?
अक्सर लोग दूसरों के अनुभवों से सीखने के बजाय,
अपनी गलतियों से ही समझते हैं कि वह कितना सही हैं।

और जब सलाह मिली, तुमने उसे नकारा,
फिर बाद में पछताए, यह सोचते हुए कि काश,
तुमने उस पल सुनी होती बात,
जिसे दूसरों ने सच्चाई समझाया था,
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

और जो सलाह देने वाला था,
उसने शायद तुम्हारी असमय अवस्था का फायदा उठाया,
तुम नाखुश हो, नाराज हो,
क्योंकि तुम्हें लगता है कि तुम असहाय थे,
जब तुम्हें चाहिए था सहयोग, तब वही सलाह थी,
जो तुम्हें मुश्किल में डाल गई।

अब तुम्हारा मन भर गया है नाराजगी से,
तुम उसे माफ नहीं कर पा रहे हो,
क्योंकि तुम्हारा अहंकार, तुम्हारी असहमति,
तुम्हारी नाकामी को स्वीकार नहीं करना चाहता।

लेकिन क्या तुम यह समझ पा रहे हो?
कभी न कभी, हमें जो मदद मिलती है,
वह हमारी असमय स्थिति में आती है,
और हमें उससे जो सिखाया जाता है,
वह असल में हमारी आत्मा को जगाता है।

सलाहों को सिर्फ एक विचार मत मानो,
यह उस मार्गदर्शन का हिस्सा है,
जो हमें आगे बढ़ने के लिए दिखाया जाता है,
चाहे वह कड़वा क्यों न लगे,
यह हमारी मंजिल की दिशा को सच्चाई से जोड़ता है।

इसलिए, तुम्हारी नाराजगी को ठंडा करो,
साफ मन से उन सलाहों को देखो,
क्योंकि असल में, हर सलाह,
तुम्हारे भीतर के अधूरे पलों को पूरा करने की एक कोशिश है,
और वही हमें सच्चे ज्ञान की ओर ले जाती है।


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