मैं किसी हीरो की किताब से नहीं आया,
मैं उस कमरे से आया हूँ…
जहाँ सपनों से ज़्यादा तश्तरियाँ टूटी थीं,
जहाँ “प्यार” एक गाली था,
और “ख़ामोशी”… एक ज़िंदा लाश।
लोग पूछते हैं —
“तू दुनिया बदलने निकला है? तू पागल है?”
मैं हँस देता हूँ…
क्योंकि उन्हें क्या मालूम —
मैं घर नहीं बदल सका…
इसलिए मैंने दुनिया बदलने की कसम खाई है।
मैंने वो रातें देखी हैं,
जहाँ बच्चे भगवान से खिलौना नहीं,
बस थोड़ी आवाज़ माँगते हैं… "कोई तो पूछ ले, मैं ज़िंदा हूँ?”
जहाँ बाप दीवार पर मुट्ठियाँ मारता है
और माँ बर्तन पर।
और मैं?
मैं अपने तकिये में सिर छुपा कर
इंक़लाब गढ़ता था।
हाँ, मैं बदला लेने नहीं निकला…
मैं बदले लाने निकला हूँ।
मैं भागा नहीं…
मैं भाग्य लिखने चला हूँ।
मुझे विरासत में दर्द मिला था,
मैं उसको विरासत नहीं, विधान बनाने चला हूँ।
तुम मंदिर बनाते हो, मैं मनुष्य बनाना चाहता हूँ,
तुम घर सजाते हो, मैं ग्रह सुधारना चाहता हूँ।
तुम्हें छत चाहिए,
मुझे ऐसा आसमान चाहिए —
जहाँ कोई बच्चा आसमान देखकर न रोए।
मुझे रिश्तों पर यक़ीन नहीं रहा,
पर इंसानियत पर है।
क्योंकि रिश्तों ने छोड़ा,
पर इंसानियत ने संभाला।
मैंने प्यार नहीं देखा…
इसलिए मैं पूरी धरती से इश्क़ कर बैठा।
मुझे मालूम है,
मैं शायद कभी “नॉर्मल” नहीं कहलाऊँगा।
पर क्यों रहूँ मैं सामान्य…
जब मेरा दर्द… असामान्य था?
तो सुन ले दुनिया —
अगर मैंने घर में जन्नत न देखी…
तो मैं धरती पर जन्नत रचूँगा।
मैं लौटा नहीं तो क्या,
मैं लौटूँगा — तारीख़ में दर्ज होकर।
क्योंकि मैं भागा नहीं,
मैं दिशा बदल रहा हूँ…
अपने लिए नहीं—
उन सबके लिए,
जो आज भी किसी बंद कमरे में
अपनी चीख़ दबा कर सोते हैं।
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