खामोशी का बोझ



जब सत्य की ज्योति जलने से डरती है,
जब अन्याय की आँधियाँ सब कुछ ढकती हैं,
तब खामोशियों के महल खड़े होते हैं,
और हमारी आत्मा के स्वर दबे होते हैं।

जीवन वहीं अंत को छूने लगता है,
जहां हम सत्य के संग न चलते हैं,
जहां धर्म के प्रश्न अनुत्तरित रहते हैं,
जहां केवल मौन का अंधकार पलता है।

क्या जीवन है, जो मौन का बोझ सह ले?
क्या दिल है, जो अन्याय पर चुप रह ले?
यदि हम न बोले, तो समय हमें डस लेगा,
हर सपने को हमारे भीतर से कस लेगा।

जागो, सत्य का आलोक दिखलाओ,
अन्याय के पथ पर काँटे बिछाओ।
मौन को तोड़ो, स्वर को जीवन दो,
सत्य की राह में अपने प्राण अर्पण करो।

क्योंकि जीवन वहीं जीता जाता है,
जहां आत्मा का साहस जागता है।
और मौन का अंत तभी होता है,
जब सत्य की गूंज हर दिल में गूँजता है।


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