सच की परछाई



चोटें गहरी, पर नजरों से ओझल,
मन के घावों से छुपा हर कोलाहल।
जो दिखता है, वह सच नहीं होता,
ध्यान का पर्दा प्यार नहीं होता।

आसक्ति की डोरें बांधती तो हैं,
पर उनसे जुड़ाव का एहसास कहां?
सच के रंग में छलावे छिपे,
सम्बन्धों में खोया विश्वास कहां?

न्यूनतम प्रयास, बस दिखावे के लिए,
दिल की गहराइयों में कुछ भी नहीं।
जो जलता है, वह केवल धुआं है,
असली आग का ताप कहीं नहीं।

सच को समझ, खुद को संभाल,
घावों को भर, नए ख्वाब पाल।
प्यार वही, जो खुद में पूरा हो,
जो ध्यान से नहीं, दिल से महसूस हो।

नंगा कर खुद को, इस तरह से,
कि तू देख सके उस सच्चाई से।
ध्यान का छल, आसक्ति का भ्रम,
सब धुंधला हो जाए जीवन में कम।


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