विश्वास और परवाह न करना



परवाह न करना, यह नहीं कि दुनिया से आँखें मूँद लो,
यह तो अपने आप पर इतना विश्वास रखना है कि कुछ भी न तुम्हें डिगा सके।
दुनिया की हर आवाज़, हर आलोचना, हर इशारा,
तुम्हारी आंतरिक शक्ति के आगे बेमानी हो जाए।

जब तुम खुद को जानते हो, समझते हो,
तब कोई भी तूफ़ान तुम्हें हिला नहीं सकता।
दुनिया के हर दबाव और फ़िक्र से ऊपर उठकर,
तुम्हारे भीतर एक स्थिरता की लहर दौड़ती है।

यह नकारात्मकता की दीवार नहीं,
बल्कि अपने आत्मविश्वास की ऊँचाई है।
जब तुम्हें ख़ुद पर यकीन हो,
तब बाहरी दुनिया की हलचल भी हल्की सी लगे।

दूसरों की राय या उम्मीदें,
तुम्हारी खुशी की कुंजी नहीं हो सकतीं।
तुम्हारा रास्ता तुम्हारे भीतर है,
जहाँ तुम्हारा विश्वास सबसे मजबूत है।

यह "न देखना, न सुनना" नहीं,
बल्कि "अपने भीतर को महसूस करना" है।
जब तक तुम अपने आप से सच्चे हो,
दुनिया की कोई भी शक्ति तुम्हें बदल नहीं सकती।


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