सवालों का सच





"कहाँ थे तुम?" बस एक सवाल था,
पर कभी-कभी वो भी बड़ा भारी मालूम पड़ा।
जब ये सवाल आता बार-बार,
तो दिल में उठती थी एक छोटी सी आंधी, कभी बेशुमार।

तुमने कहा, "बस, काम में था व्यस्त,"
लेकिन फिर भी वो सवाल, थमा न था, लगातार।
हर बार तुम्हारे लौटने पे, वही एक ही सवाल,
क्या तुमने मुझसे कभी नहीं सुना, दिल का हलचल का ग़माल?

मुझे पता है, प्यार में सवाल और जवाब होते हैं,
लेकिन कभी-कभी वो बार-बार पूछे गए सवाल,
वो शंका के निशान छोड़ जाते हैं,
जिनका कोई ठोस जवाब नहीं होता, बस दिल में कई सवाल।

तो जब तुम पूछो, "कहाँ थे तुम?"
यह जरूरी नहीं कि मैं कुछ छुपा रहा हूँ।
कभी कभी ये सवाल तुम्हारी चिंता से आता है,
पर हर दिन वही सवाल थोड़ा और दिल में चुभता है।

प्यार और विश्वास में, एक जगह होती है समझ,
जहाँ सवाल प्यार से पूछे जाते हैं, बिना किसी डर या गुस्से के संग।
कभी-कभी, यह सवाल सच्चाई की तलाश नहीं,
बल्कि उस घबराहट का हिस्सा होता है, जो हर दिन होता है छुपा, बिना किसी विराम के।

इसीलिए, सवाल सही है, पर उसकी लय में प्यार का होना जरूरी है,
ताकि दिल में संदेह नहीं, सिर्फ सच्चाई का भरोसा हो।


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