दोस्ती का अंत



दोस्ती का अंत कभी नहीं होता शोर,
यह धीरे-धीरे होता है, बिना किसी सवाल के जवाब।
जब देर से मिलें, और बातों में कमी हो,
राहों में फासले बढ़ते जाएं, और दिलों में दूरियाँ हो।

जो कभी साथ रहते थे, हंसी में जीते थे,
अब एक-दूसरे की मौजूदगी से दूर होने लगे थे।
एक समय था, जब हर पल की बात थी खास,
अब हर पल में एक खामोशी का पास।

हर सवाल का जवाब देर से आता,
हर मुलाकात में दूरी बढ़ती जाती।
यह नहीं होता, "तुम क्या कर रहे हो?",
बल्कि अब होता है, "क्या फर्क पड़ता है?"

लेकिन दोस्ती को फिर से मजबूत करना है,
तो उसे कुछ अलग करने का कारण दो।
सवालों से नहीं, बल्कि हंसी से शुरुआत करो,
समय बिताने की वजहों को फिर से खोजो।

जब दिलों में फिर से नयापन हो,
तो रिश्ते नए रंगों में खिलते हैं।
हर मुलाकात को खास बना दो,
ताकि दोस्ती फिर से सजीव हो जाए।

दोस्ती अगर सच है, तो उसकी राह में कभी भी रुकावट नहीं,
बस एक-दूसरे की जरूरत और समझ होनी चाहिए।
इसलिए समय ना गवाओ, दिल से बोलो,
क्योंकि दोस्ती वही है, जो कभी खत्म नहीं होती, बस बदलती है।


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