ज़िंदगी के खेल में जो जीता,
वह वही था जो हारा।
ना तमगे का लालच,
ना जीत का सहारा।
न ध्यान दिया ग़मों पर,
न ख़ुशियों पर इतराया।
जो चलता रहा मुसाफ़िर,
बस सफ़र में रम पाया।
ना परवाह" का फ़लसफ़ा,
पर सच्चाई से निभाना।
दिल से जो छोड़े मोह-माया,
वही पाए सुकून का ख़ज़ाना।
न कर्म करो, न फल की चाह,
गीता का यही उपदेश।
गहरी सांस ले, चल बस,
यही तो जीवन का संदेश।
जो सच में फिक्र से आज़ाद,
उसका हर पल है त्योहार।
जीत उसकी है, जो न डरे,
और न बांधे ख़ुद को व्यापार।
तो छोड़ दो ये फिक्र का बंधन,
और देखो नया सवेरा।
ज़िंदगी का असली रास,
है “जियो खुल के, बिना बसेरा।
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