सोच और सिस्टम: सवाल उठाना जरूरी है



मैं उस मूल पोस्ट से असहमत नहीं हूं,
बस इसे और गहराई से समझने की कोशिश कर रहा हूँ।
हमारी सोच कहीं से आई नहीं होती,
यह एक सिस्टम का परिणाम है, जो हमें सिखाता है कि स्थिति ही मूल्य है।

मूल्य और आत्मसम्मान की जो परिभाषा हमने सीखी है,
वह कभी हमारी नहीं थी, यह किसी और ने तय की है।
सोच को बदलना सचमुच जरूरी है,
लेकिन यह शुरुआत होती है उस स्क्रिप्ट को सवाल में डालने से, जो हमें दी गई है।

अगर हम अपनी सच्चाई और स्वतंत्रता की ओर बढ़ना चाहते हैं,
तो पहले हमें यह समझना होगा कि हम जो सोचते हैं,
वह हमारी असल सोच नहीं,
बल्कि उन विचारों का परिणाम है जो हमें बाहर से दिए गए थे।

बस यही मेरा कहना था,
अब इसे खींचने की कोई ज़रूरत नहीं।
सिर्फ़ इतना कि, बदलाव उसी दिन शुरू होता है
जब हम वह स्क्रिप्ट पहचानते हैं और सवाल उठाते हैं।


No comments:

Post a Comment

Thanks

छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...