उठाने की राह



कभी-कभी उठाना जरूरी है,
लेकिन समझना चाहिए, कब खुद को बचाना है।
कई बार लोगों को सहारा दिया,
पर खुद को खोते पाया, क्या यह ठीक था?

समय की चुपचाप खामोशी ने कहा,
कभी-कभी मदद से खुद को सिखाना है।
जो न समझे, न चाहते बदलना,
उनसे दूर रहकर खुद को सवारना है।

मैंने दिया सब कुछ, खो दिया बहुत कुछ,
उनकी खामियों को सीने से लगाया।
पर जब देखा, खुद को टूटते पाया,
तो यह समझा, अपनी शक्ति को बचाना है।

उठाना जरूरी है, लेकिन कब?
जब किसी की मनोवृत्ति हो तैयार।
नहीं तो हम ही गिरने लगते हैं,
सच यही है, खुद को संभालना है बार-बार।


No comments:

Post a Comment

Thanks

शांत रहो, सुनने की शक्ति बढ़ेगी

जब मौन की चादर ओढ़ता हूँ, भीतर का कोलाहल शांत होता है। हर आहट, हर ध्वनि, जैसे मन का संगीत बन जाता है। शब्दों के शोर में खो जाता था, अब मौन क...