वो लड़की,
जिसके बाल कभी सँवारे न गए,
जिसकी ज़ुल्फ़ें हवा से बातें करतीं,
लहरों की तरह बिखरतीं, मचलतीं।
कोई कहता—
"इन्हें बाँध लो, सलीके में रखो!"
पर वो हँस देती,
जैसे ये मज़ाक हो कोई।
उसके बालों की तरह,
उसका मन भी नहीं था क़ैद में।
वो भागती, दौड़ती,
सोच के हर दायरे से परे।
जब दुनिया ने उसे टोका,
कि उसे ढलना होगा—
किसी साँचे में, किसी रूप में,
तो उसने बस हवा को देखा
और बालों को खुला छोड़ दिया।
"कैसे रोकोगे मुझे?"
उसकी मुस्कान पूछती रही।
"मैं तो वो हूँ,
जो बंधन में आकर भी मुक्त रहती है।"
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