मैं और मेरे निशान



जो भीतर तक आने दिया,
वह मेरा हिस्सा बन गया।
ना मन से, ना तन से मिटा,
वह मुझमें कहीं सदा बसा।

मैंने जो स्पर्श महसूस किया,
उसने मेरा अस्तित्व बदल दिया।
हर लम्हा, हर पल की छाया,
मेरे भीतर अनजाने समाया।

शरीर तो मात्र एक माध्यम है,
मन भी इससे अछूता कहाँ है।
जो घुला मेरे एहसासों में,
वह बसा है मेरे सांसों में।

यादों की नसों में बसी वो बात,
मिटा न सके कोई आघात।
मैं जो हूँ, उसमें वे शामिल हैं,
उनके निशान मेरे दिल में क़ायम हैं।

हर अनुभव मुझमें नया आकार लेता,
हर स्पर्श मेरा जीवन बदल देता।
मैं हूँ वो जो मैंने जिया,
जो भीतर समाया, वह कभी न गया।


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