प्रेम का चक्र


मैं जब तुझसे सच्चा प्यार करता हूँ,
तब मेरे दिल में न कोई दूरी, न कोई ग़म।
तेरे भीतर एक अजीब सी ख़ुशबू है,
जो मुझे तुझसे बार-बार जोड़ती है,
कभी फिर से बिछड़ती है,
फिर लौटकर उसी राह पर जाती है।

तुझसे प्रेम करना और तुझे समझना,
मेरे भीतर एक नयी दिशा को खोलता है।
तुझे स्वीकार करने से ही,
मेरे रिश्ते का पेड़ मजबूत होता है,
हर तूफान में फिर भी खड़ा रहता है।

तुझे पसंद करना, तुझे इज्जत देना,
यह वही कड़ी है, जो प्रेम को स्थिर बनाती है।
तेरी अच्छाई, तेरी खामियाँ,
साथ मिलकर हमारी यात्रा को और भी खास बनाती हैं।

मैं जब तुझे सच्चे मन से चाहता हूँ,
तो मैं सिर्फ़ अपने दिल की आवाज़ सुनता हूँ।
यह वही प्यार है, जो बार-बार
मुझे तेरे करीब ले आता है,
हर बार तुझसे फिर से जुड़ जाता है।

क्योंकि प्रेम वही होता है,
जो कभी खत्म नहीं होता,
जो बदलता है, पर एक नयी शक्ल में
हमेशा उसी व्यक्ति से जुड़ा रहता है।


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