यहां से वहां जाना, वहां से यहां आना,
फिर वहीं पहुंचना, जहां से शुरू किया था।
यही जीवन चक्र है, सतत चलती माया,
कालचक्र का खेल है, जिसमें बंधी है काया।
जन्म का प्रभात जब, धरती पर होता,
जीवन की किरणें, हर ओर फैलती,
सपनों के पंख लगा, उड़ान भरता मन,
जीवन के हर कोने में, नई उमंगें जगती।
समय की धारा में, बहता है हर प्राणी,
सुख-दुख के संगम में, हर दिन की कहानी,
कभी हंसता, कभी रोता, कभी शांत रहता,
जीवन की पुस्तक में, नए अध्याय रचता।
दोपहर की धूप में, परिश्रम का फल मिलता,
संघर्ष की राह पर, मनोबल को छलता,
कभी हार, कभी जीत, कभी संतोष का सागर,
जीवन की तरंगें, हर पल नई दिशा दिखातीं।
सांझ की छाया में, थकान से मिलन होता,
स्मृतियों की गोद में, मन विश्राम पाता,
सपनों के आंगन में, नए रंग भरता,
अगले दिन की सुबह, नई उमंग से सजता।
मृत्यु की रात, जब जीवन की लौ बुझती,
आत्मा की यात्रा, नव जन्म का संकेत देती,
फिर से यहां से वहां, जीवन का चक्र चलता,
नव आरंभ के साथ, फिर वही खेल चलता।
यहां से वहां जाना, वहां से यहां आना,
यही जीवन चक्र है, सतत चलती माया,
कालचक्र का खेल है, जिसमें बंधी है काया।
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