ध्यान अवश्य ही निर्विचार की ओर ले जाता है,
जैसे हर नदी बिना नक्शों के, बिना मार्गदर्शकों के
सागर की ओर बढ़ती है।
हर नदी, बिना किसी अपवाद के,
अंततः सागर तक पहुँचती है।
हर ध्यान, बिना किसी अपवाद के,
अंततः निर्विचार की अवस्था तक पहुँचता है।
कृत्रिम मेधा मन के दर्पण की छवि बनाए, मशीनों को जीवन का रंग दिखाए। कभी आँकड़ों की गहराई में उतरे, कभी भविष्य की संभावनाओं को पकड़े। स...
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