खुद से खेलना



गह! चमड़ी उतारता हूँ
अब तो ये हद हो गई, बस—
क्या कभी मैंने सोचा था ऐसा,
कि खुद को फिर से नया बनाऊँगा?

है, ये जो मैं हूँ, ये क्या है?
अब तो थोड़ी और क्रिएटिविटी दिखाऊँ,
उतारूँ, फिर से पहन लूँ कुछ और,
कभी ग्रीन, कभी रेड, कभी ब्लू!

मुझे तो अब लगता है,
क्या फर्क पड़ता है इस सब से?
मेरा रूप बदलता रहे,
मेरा दिल वही, वही चमकते चेहरे!

कभी सोचता हूँ, और कभी हँसता हूँ,
खुद से ये मजाक करता हूँ!
न कोई गंभीरता, न कोई डर,
बस मस्ती में खो जाने का सफर।

तो अब चमड़ी उतार ली मैंने,
और मन में फुर्र से उड़ा हूँ!
क्योंकि यही है मेरा तरीका,
हंसी में जीने का अपना तरीका!


No comments:

Post a Comment

Thanks

आधी-अधूरी आरज़ू

मैं दिखती हूँ, तू देखता है, तेरी प्यास ही मेरे श्रृंगार की राह बनती है। मैं संवरती हूँ, तू तड़पता है, तेरी तृष्णा ही मेरी पहचान गढ़ती है। मै...