अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूँ

तुमसे प्रेम में सारा संसार समाहित है,
तेरे साथ जुड़कर, हर जीव में भगवान है।

अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूँ,
तत्त्वमसि, तुम भी वही सत्य हो।
अयमात्मा ब्रह्म, ये आत्मा ब्रह्म है,
प्रज्ञनं ब्रह्म, ज्ञान ही ब्रह्म है।

प्रेम की इस बंधन में हम हैं एक,
तेरे संग मिलकर, हर बंधन टूटते।
हर मन, हर आत्मा, हर जीव में,
सर्वव्यापी प्रेम की धारा बहती है।

तेरे साथ होने में, मैं सब कुछ पा लेता हूँ,
सभी का अंश, हर एक का प्रेम।
ब्रह्म के इस अनंत विस्तार में,
तेरे प्रेम में मैं सर्वस्व समर्पित हूँ।

यह प्रेम है मंत्र, यह प्रेम है ध्यान,
यह प्रेम ही है सच्चा ज्ञान।
तुम्हारे प्रेम में है ब्रह्म का दर्शन,
और इस प्रेम में है मुक्ति का मार्ग।


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