(कविता – जब अपमान मिले, तब मौन कैसे बनता है शक्ति)
जब कोई मुझसे तमीज़ भूल जाए,
और शब्दों में ज़हर घोल जाए,
तब मैं लड़ता नहीं, चीखता नहीं,
मैं बस मुस्कराता हूँ… और चुप हो जाता हूँ।
मैं जानता हूँ, मेरी चुप्पी में वो आग है,
जो तुम्हारे तमाशों से कहीं ज़्यादा तेज़ भाग है।
मैं जवाब नहीं देता, क्योंकि
तुम्हारे स्तर पर आना मेरी हार होगी।
न मैं बहस करता हूँ, न सफ़ाई देता हूँ,
क्योंकि सच्चाई को शब्दों की ज़रूरत नहीं होती।
मैं बस एक कदम पीछे हट जाता हूँ,
और वही दूरी, मेरा सबसे ऊँचा उत्तर बन जाती है।
मेरे मौन में तुम्हारे लिए कोई डर नहीं —
बस मेरे आत्मसम्मान की गूंज है।
मैं तुम्हारे अपमान में उलझकर
अपने वजूद को छोटा नहीं करता।
कभी-कभी
सबसे ऊँचा स्वर… मौन होता है।
सबसे तीखा वार… दूरी होती है।
और सबसे गहरी जीत… नज़रअंदाज़ करना।
तो याद रखो,
जब तुमने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की,
मैंने कुछ नहीं कहा —
पर मेरी चुप्पी, तुम्हें आज भी गूंजती होगी।
— दीपक डोभाल
अगर चाहो तो मैं इस पर एक पोस्टर या रील स्क्रिप्ट भी बना सकता हूँ।
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